कथा सुरभि

कर्मनाशा की हार


लेखक - डॉ० शिवप्रसाद सिंह

लेखक परिचय

डॉ० शिवप्रसाद सिंह का जन्म १९ अगस्त, १९२८ को बनारस के जलालपुर गांव में एक जमींदार परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा वाराणसी में ही हुई। इन्होंने काशी विश्वविद्‌यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और वहीं अध्यापन कार्य करने लगे।
 भारत सरकार की नई शिक्षा नीति के अंतर्गत यू.जी.सी. ने १९८६ में उन्हें 'हिन्दी पाठ्यक्रम विकास केन्द्र' का समन्वयक नियुक्त किया था. इस योजना के अंतर्गत उनके द्वारा प्रस्तुत हिन्दी पाठ्यक्रम को यू.जी.सी. ने १९८९ में स्वीकृति प्रदान की थी और उसे देश के समस्त विश्वविद्यालयों के लिए जारी किया था. वे 'रेलवे बोर्ड के राजभाषा विभाग' के मानद सदस्य भी रहे और साहित्य अकादमी, बिरला फाउंडेशन, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान जैसी अनेक संस्थाओं से किसी-न-किसी रूप में संबद्‌ध रहे थे।
शिवप्रसाद जी ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में अपनी साहित्यिक प्रतिभा की अभिव्यक्ति की।
इनकी प्रथम कहानी ’दादी माँ’ सन्‌ १९५१ में प्रतीक नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई।
डॉ०शिवप्रसाद सिंह जी ने अपनी रचनाओं में समाज में फैली कुरीतियों और विसंगतियों पर जोरदार तरीके से प्रहार किया। इनकी भाषा सहज तथा प्रवाहमयी है। इनकी भाषा में आंचलिक शब्दों का प्रयोग भी अत्यंत रोचक ढंग से किया गया है।
प्रमुख रचनाएँ - नीला चाँद (साहित्य अकादमी), गली आगे मुड़ती हैे, कोहरे में युद्‌ध, दिल्ली दूर है, शैलूष, घाटियाँ गूँजती हैं (नाटक), कस्तूरी मृग (निबंध) आदि।

कठिन शब्दार्थ

हलाहल - ज़हर
कजली - सावन में गाया जाने वाला गीत
सोखा - ओझा, तांत्रिक
ज्वार - पानी का चढ़ाव
सिवान - गाँव का सीमान्त प्रदेश
होलदिली - भय
मुर्दनी - मुर्दे जैसा भाव
बरकत - बढ़ोतरी
लुग्गा - कपड़ा
बखरी - घर
बरजोरी - बलपूर्वक
अकबाल - प्रभाव
काकुल - घुँघराले बालों का गुच्छा
बिनौला - कपास का बीज
गपास्टक - गपशप
पतुरिया - नाचने-गाने वाली
कलौंज - दुर्भावना
आरक्त पाँते - लाल पंक्तियाँ
प्रशस्त - प्रशंसनीय
धराशायी - जमीन पर गिरा हुआ 

प्रश्नोत्तर 

१. कर्मनाशा की हार अंधविश्वास पर मानवीय विश्वास की जीत है। कैसे कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

२. भैरो पांडे के चरित्र की व्याख्या करते हुए नईडीह गाँव की सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का वर्णन करें।





कामकाज
लेखक - चंद्रगुप्त विद्‌यालंकार

लेखक परिचय
चंद्रगुप्त विद्‌यालंकार का जन्म सन् १९०६ में पंजाब के एक गाँव कोटअद्‌दू में हुआ। इन्होंने १९२८ के लगभग साहित्य रचना आरंभ किया। विद्‌यालंकार का नाम हिन्दी साहित्य के यथार्थवादी कहानिकारों में सम्मिलित किया जाता है। इन्होंने अपनी रचनाओं
में भारतीय समाज का वास्तविक स्वरूप अंकित किया है। इनकी रचनाओं में विभाजन की त्रासदी का दृश्य भी मौजूद है।
चंद्रगुप्त विद्‌यालंकार ने विदेशी भाषा के प्रसिद्‌ध साहित्य का हिन्दी में अनुवाद-कार्य भी किया है।
इनकी भाषा सहज है जिसमें संस्कृत के शब्दों का व्यावहारिक प्रयोग किया गया है।
प्रमुख रचनाएँ – 
मास्टर साहब, कामकाज, आँसू, बचपन गोरा, संदेह, भय का राज्य, पगली, ताड़ का पत्ता, पहला आस्तिक, वापसी, तीन दिन आदि।

कठिन शब्दार्थ

तहलका - खलबली
हज़ामत बनाना - दाढ़ी बनाना
मातमी - शोकमय
मजमा - समूह
इलहाम - अनुमान
व्यग्र - बेचैन
मुल्तवी करना - स्थगित करना
दारुण - दर्दनाक
लिहाज से - विचार से, दृष्टि से
संभ्रान्त - प्रतिष्ठित
सहन - आँगन
मुगरी - छोटा मूसल
उलाहना - शिकायत (ताना)
सरदा - खरबूजे की जाति का एक फल
बहिश्त - स्वर्ग
लाज़मी - अनिवार्य
खिदमत - सेवा
गश आना - चक्कर आना, बेहोश हो जाना

प्रश्नोत्तर
१."कामकाज" कहानी में तीन कहानियों का समावेश होने के बावजूद  कथानक ऐक्य है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।

२. देसराज आधुनिक समाज के उस व्यक्ति का प्रतीक है जो शोषित होकर
भी उससे मुक्ति नहीं चाहता और जेलर का व्यक्तित्व सरकारी-तंत्र की
अव्यवस्था का प्रतीक है । कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।


लक्ष्मी का वाहन





लेखक - रांगेय राघव

लेखक-परिचय
इनका मूल नाम तिरूमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था; लेकिन उन्होंने अपना साहित्यिक नाम ‘रांगेय राघव’ रखा। इनका जन्म १७ जनवरी, १९२३ श्री रंगनाथ वीर राघवाचार्य के घर हुआ था। इनकी माता श्रीमती वन -कम्मा और पत्नी श्रीमती सुलोचना थीं। इनका परिवार मूलरूप से तिरुपति, आंध्र प्रदेश का निवासी था।‘वैर’ गाँव के सहज, सादे ग्रामीण परिवेश में उनके रचनात्मक सहित्य ने अपना आकार गढ़ना शुरू किया। जब उनकी सृजन-शक्ति अपने प्रकाशन का मार्ग ढूँढ़ रही थी तब देश स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत था। ऐसे वातावरण में उन्होंने अनुभव किया- अपनी मातृभाषा हिंदी से ही देशवासियों के मन में देश के प्रति निष्ठा और स्वतंत्रता का संकल्प जगाया जा सकता है। यों तो उनकी सृजन-यात्रा सर्वप्रथम चित्रकला में प्रस्फुटित हुई। सन् १९३६-३७ के आस-पास जब वह साहित्य की ओर उन्मुख हुई तो उसने सबसे पहले कविता के क्षेत्र में कदम रखा और इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति का अंत भी मृत्यु पूर्व लिखी गई उनकी एक कविता से ही हुआ। उनका साहित्य सृजन भले ही कविता से शुरू हुआ हो, लेकिन उन्हें प्रतिष्ठा मिली एक गद्य लेखक के रूप में। सन् १९४६ में प्रकाशित ‘घरौंदा’ उपन्यास के जरिए वे प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए। १९६२ में उन्हें कैंसर रोग से पीड़ित बताया गया था। उसी वर्ष १२ सितंबर को उन्होंने मुंबई (तत्कालीन बंबई) में देह त्यागी।
राघव जी की भाषा में व्यंग्य का पुट विद्‌यमान है। इन्होंने छोटे-छोटे संवादों का प्रयोग किया जिसमें बड़ी कुशलता के साथ अरबी, फारसी शब्दों का इस्तेमाल किया।
प्रमुख रचनाएँ - ऐयाश मुर्दे, इनसान पैदा हुआ, साम्राज्य का वैभव, एक छोद एक आदि।


कठिन शब्दार्थ

वाहन - सवारी
करधनी - कमर का गहना
मरियल - कमजोर
सात्विक - पवित्र
हूश - असभ्य

विक्षोभ - बेचैनी
ऐंठ - अकड़
धाँस - तीव्र गंध

प्रश्नोत्तर
१."लक्ष्मी का वाहन" कहानी शोषक और शोषित-वर्ग के संघर्ष की व्याख्या रोचक ढंग से  करती है - प्रस्तुत  पंक्ति का विश्लेषण कीजिए।
    

२."लक्ष्मी का वाहन" कहानी के आधार पर सर्वहारा-वर्ग की समस्याओं का चित्रण करते हुए उसके उपायों की भी चर्चा कीजिए और यह बताइए  कि भारतीय समाज में मजदूरों की स्थिति कैसी है?











पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'

ऐसी होली खेलो, लाल!

लेखक - परिचय
पांडेय बेचन शर्मा "उग्र" (१९०० - १९६७) हिन्दी के साहित्यकार एवं पत्रकार थे
का जन्म उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के अंतर्गत चुनार नामक कस्बे में  1901 को हुआ था। इनके पिता का नाम वैद्यनाथ पांडेय था। ये अत्यंत अभावग्रस्त परिवार में उत्पन्न हुए थे। अत:इन्हें शिक्षा भी व्यवस्थित रूप से नहीं मिल सकी। अभाव के कारण इन्हें बचपन में राम-लीला में काम करना पड़ा था। ये अभिनय कला में बड़े कुशल थे। बाद में काशी के सेंट्रल हिंदू स्कूल से आठवीं कक्षा तक शिक्षा पाई, फिर पढाई का क्रम टूट गया। साहित्य के प्रति इनका प्रगाढ़ प्रेम लाला भगवानदीन के सामीप्य में आने पर हुआ। इन्होंने साहित्य के विभिन्न अंगों का गंभीर अध्ययन किया। ये बचपन से ही काव्यरचना करने लगे थे। अपनी किशोर वय में ही इन्होंने प्रियप्रवास की शैली में "ध्रुवचरित्" नामक प्रबंधकाव्य की रचना कर डाली थी।
मौलिक साहित्य की सर्जना में ये आजीवन लगे रहे। इन्होंने काव्य, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि क्षेत्रों में समान अधिकार के साथ श्रेष्ठ कृतियाँ प्रस्तुत की। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उग्र जी ने सच्चे पत्रकार का आदर्श प्रस्तुत किया। वे असत्य से कभी नहीं डरे, उन्होंने सत्य का सदैव स्वागत किया, भले ही इसके लिए उनहें कष्ट झेलने पड़े। पहले काशी के दैनिक "आज" में "ऊटपटाँग" शीर्षक से व्यंग्यात्मक लेख लिखा करते थे और अपना नाम रखा था "अष्टावक्र"। फिर "भूत" नामक हास्य-व्यंग्य-प्रधान पत्र निकाला। गोरखपुर से प्रकाशित होनेवाले "स्वदेश" पत्र के "दशहरा" अंक का संपादन इन्होंने ही किया था। तदनंतर कलकत्ता से प्रकाशित होनेवाले "मतवाला" पत्र में काम किया। "मतवाला" ने ही इन्हें पूर्ण रूप से साहित्यिक बना दिया। फरवरी, सन् 1938 ई. में इन्होंने काशी से "उग्र" नामक साप्ताहिक पत्र निकाला।  1967 में दिल्ली में इनका देहावसान हो गया।

इनके रचित ग्रंथ इस प्रकार हैं-


नाटक
महात्मा ईसा, चुंबन, गंगा का बेटा, आवास, अन्नदाता माधव महाराज महान्।

उपन्यास
चंद हसीनों के खतूत, दिल्ली का दलाल, बुधुवा की बेटी, शराबी, घंटा, सरकार तुम्हारी आँखों में, कढ़ी में कोयला, जीजीजी, फागुन के दिन चार, जूहू।

कहानी
पंजाब की महारानी, रेशमा, पोली इमारत, यह कंचन की काया, काल-कोठरी, उसकी माँ आदि।

काव्य
ध्रुवचरित, बहुत सी स्फुट कविताएँ।

आलोचना
तुलसीदास आदि अनेक आलोचनातमक निबंध।

शब्दार्थ

विरासत - जो पुरखों से प्राप्त हो
निरा - पूरी तरह
बुकनी - चूर्ण
  पैंतरा बदलना - चाल बदनना
कराल - भीषण, प्रचंड
किंचित - थोड़ा सा
गोत्र - कुल
हर्ज - नुकसान
उद्‌धार - मुक्ति
संधि - समझौता
पुलकित कलेवर - रोमांचित शरीर
यथेष्ट - काफी
धवल दाढ़ी - सफेद दाढ़ी
विकट वाहिनी - उगे सेना
संरक्षता - बचाव
रुंड - धड़
मुंड - सिर
खमभरी - घुमावदार

प्रश्न
1.'ऐसी होली खेलो, लाल! ' राष्ट्रीय स्वाभिमान की कहानी है। महासिंह और पद्‌मा राष्ट्रीयता के गुणों से ओत-प्रोत हैं। स्पष्ट कीजिए।

2. 'ऐसी होली खेलो लाल ' के माध्यम से युवाओं में राष्ट्रीय
 स्वाभिमान व देशप्रेम की भावना को जागृत करने का सफल
 प्रयास किया है, समझाकर लिखिए।




विष्णु प्रभाकर
धरती अब भी घूम रही है

लेखक-परिचय
विष्णु प्रभाकर ( २१ जून १९१२- ११ अप्रैल २००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक के रूप में विख्यात हुए। उनका जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था। उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपये मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।
विष्णु प्रभाकर ने पहला नाटक लिखा- हत्या के बाद, हिसार में नाटक मंडली में भी काम किया और बाद के दिनों में लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया। आजादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर १९५५ में आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक के तौर पर नियुक्त हो गये जहाँ उन्होंने १९५७ तक काम किया। १९३१ में हिन्दी मिलाप में पहली कहानी दीवाली के दिन छपने के साथ ही उनके लेखन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज आठ दशकों तक निरंतर सक्रिय है। नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से वे शरत चन्द्र की जीवनी आवारा मसीहा लिखने के लिए प्रेरित हुए जिसके लिए वे शरत को जानने के लगभग सभी सभी स्रोतों, जगहों तक गए, बांग्ला भी सीखी और जब यह जीवनी छपी तो साहित्य में विष्णु जी की धूम मच गयी। कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी विधाओं में प्रचुर साहित्य लिखने के बावजूद आवारा मसीहा उनकी पहचान का पर्याय बन गयी। बाद में अर्धनारीश्वर पर उन्हें बेशक साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला हो, किन्तु आवारा मसीहा ने साहित्य में उनका मुकाम अलग ही रखा।

प्रमुख कृतियाँ

उपन्यास- ढलती रात, स्वप्नमयी, अर्धनारीश्वर, धरती अब भी घूम रही है, क्षमादान, दो मित्र, पाप का घड़ा, होरी,
नाटक- हत्या के बाद, नव प्रभात, डॉक्टर, प्रकाश और परछाइयाँ, बारह एकांकी, अशोक, अब और नही, टूटते परिवेश आदि।
कहानी संग्रह- संघर्ष के बाद, धरती अब भी धूम रही है, मेरा वतन, खिलौने, आदि और अन्त आदि।
आत्मकथा- पंखहीन नाम से उनकी आत्मकथा तीन भागों में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है।
जीवनी- आवारा मसीहा,
यात्रा वृतान्त्- ज्योतिपुन्ज हिमालय, जमुना गन्गा के नैहर मै।

सम्मान

पद्‌म भूषण, अर्धनारीश्वर उपन्यास के लिये भारतीय ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी सम्मान तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरु अवॉर्ड इत्यादि

शब्दार्थ
भयातुर दृष्टि - डरी हुई दृष्टि
कालस - कालापन
तमसावृत - अन्धकारमय
अग्नि की स्फुलिंग - चिनगारी
कसक - पीड़ा
गुड़मुड़ - मोड़े हुए
वक्ष - छाती
घुड़कर - डाँटकर
भींचना - जोर से पकड़ना
हालन - कँपकँपी वाला बुखार
तुनककर - चिड़चिड़ाकर
अनायस - एकाएक
धवल - सफेद
ज्योत्सना - चाँदनी
तन्द्रा - हल्की नींद, ऊँघाई
अट्‌टहास - ठहाका लगाना, जोरदार हँसी
कौटुम्बिक प्रतिभा - पारिवारिक योग्यता
मुरीद - मानने वाला, चेला
पुनश्च - दोबारा, बाद में

प्रश्न -

धरती अब भी घूम रही है ’ कहानी का उद्‌देश्य स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि सामाजिक अव्यवस्था बच्चों के मन पर किस
प्रकार व कैसा प्रभाव डालती है ?                                 
 


भाग्य-रेखा










भीष्म साहनी



लेखक-परिचय

आधुनिक हिन्दी साहित्य में भीष्म साहनी का स्थान महत्त्वपूर्ण है। साहनी जी ने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से अँग्रेजी में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा अध्यापन का कार्य करने लगे। विभाजन के बाद ये दिल्ली चले आए। सन्‌ 1957 से 1963 तक इन्होंने मास्को (रूस) में अनुवादक के रूप में कार्य किया और टॉलस्टाय, आस्त्रॉस्की आदि की रचनाओं का अनुवाद किया।
भीष्म साहनी की कहानियों में सामाजिक विसंगतियों का यथार्थपरक चित्रण किया गया है। भारत विभाजन पर आधारित "तमस" उपन्यास के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
इन्होंने सामान्य बोलचाल की भाषा में उर्दू, अँग्रेजी और संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है।
प्रमुख रचनाएँ - भाग्य रेखा, पटरियाँ, भटकती राख, अमृतसर आ गया, शोभा-यात्रा, चीफ़ की दावत, खून का रिश्ता, प्रोफेसर आदि।

कठिन शब्दार्थ

सिरहाना - तकिया
पीकदान - थूकदान
नामुराद - अभागा
यजमान - जो पंडित से पूजा करवाता है
मूक - खामोश
शरणार्थी - शरण लेने वाला
तादाद - संख्या
गंजी - बनियान
मंद - धीमी
भीमाकार - बड़े आकार का

प्रश्नोत्तर

१.भाग्य-रेखा कहानी सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों पर तीखा व्यंग्य करती है। स्पष्ट कीजिए।

२.यजमान किस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है? जुलूस देखकर उसके मन में क्या प्रतिक्रिया हुई और मई दिवस के विषय में उसने ज्योतिषी को क्या बताया? समझाकर लिखिए।








महादेवी वर्मा

घीसा

लेखिका परिचय

(२६ मार्च, १९०७११ सितंबर, १९८७हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।
उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। उन्हें संगीत की जानकार भी थी। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ  कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं।
महादेवी वर्मा ने अपनी रचनाओं के द्वारा स्त्री-सुधार पर भी ध्यान दिया।
प्रमुख रचनाएँ - नीहार, नीरजा, रश्मि, यामा, दीप-शिखा, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, सोना, गिल्लू आदि।

शब्दार्थ

आर्द्रता - गीलापन
क्षत विक्षत - घायल
घरौंदे - मिट्‌टी या रेत का घर
निरी - सिर्फ़, पूरी
गुदना - शरीर पर अंकित चिह्‌न
सेतु - पुल
इंडुरी - कपड़े की बनी गद्‌दी जिसे सिर पर रखकर बोझ उठाते हैं
निष्प्रभ - आभाहीन
सलूका रहित - बिना ब्लाउज़ के
ध्येय - मकसद
मेहरारू - पत्नी
कोटर - पेड़ में बना छेद
संतप्त - गर्म
पर्णकुटी - पत्तों की झोंपड़ी
प्रगल्भ - वाक्‌पटु

प्रश्नोत्तर
१. घीसा का गुरु कौन था ? उसकी गुरुभक्ति का उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए कि उसने गुरुदक्षिणा में अपने गुरु को क्या दिया ?


सुदर्शन

संन्यासी

लेखक परिचय
(1895-1967) प्रेमचन्द परम्परा के कहानीकार हैं। इनका दृष्टिकोण सुधारवादी है। ये आदर्शोन्मुख यथार्थवादी हैं। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह सुदर्शन हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे हैं। अपनी प्रायः सभी प्रसिद्ध कहानियों में इन्होंने समस्यायों का आदशर्वादी समाधान प्रस्तुत किया है। सुदर्शन की भाषा सरल, स्वाभाविक, प्रभावोत्पादक और मुहावरेदार है। इनका असली नाम बदरीनाथ है।
लाहौर की उर्दू पत्रिका हज़ार दास्ताँ में उनकी अनेक कहानियां छपीं। उनकी पुस्तकें मुम्बई के हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय द्वारा भी प्रकाशित हुईं। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों ही में लिखा।"हार की जीत" पंडित जी की पहली कहानी है और १९२० में सरस्वती में प्रकाशित हुई थी।
उन्होंने  फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे हैं। फिल्म धूप-छाँव (१९३५) के प्रसिद्ध गीत तेरी गठरी में लागा चोर उन्ही के लिखे हुए हैं।
प्रमुख रचनाएँ -पुष्पलता, सुप्रभात, सुदर्शन-सुधा, सुदर्शन-सुमन, पनघट
 (कहानी संग्रह)
परिवर्तन, भागवंती, राजकुमार (उपन्यास)।

कठिन शब्दार्थ
सुध - होश
भाजी - सब्जी
कुढ़ता - खीझना
जोरूदास - पत्नी का गुलाम
मिट्टी उड़ना - मजाक उड़ना
पद दलित - पाँव से कुचलना
निवृत - मुक्त होना
कंदरा - गुफा
दंड - डंडा, लाठी
दग्ध - जलना
लोहड़ी - एक पर्व
कुम्हलाया - मुरझाया
शिशिर - शरद ऋतु
वाटिका - बगीचा, उद्यान
रंग में भंग - मजा किरकिरा होना
साँझ - शाम

प्रश्नोत्तर
१.संन्यास का अर्थ गृहस्थ जीवन से पलायन नहीं बल्कि उसका पालन करना है। कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
२.पालू किस प्रकार का व्यक्ति था? पालू का जीवन से मोहभंग क्यों हो गया? वह अपने बालक को किसके  आश्रय में छोड़ गया और उसका क्या परिणाम हुआ?
३.संन्यासी शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि क्या संन्यास लेने से पालू को शांति मिल सकी? यदि नही   तो क्यों?










विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक

रक्षाबंधन

लेखक परिचय

अंबाला में सन्‌ 1891 में जन्मे कौशिक ने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू और फारसी की प्रारंभिक शिक्षा कानपुर में प्राप्त की। पहले इनकी रुचि उर्दू में अधिक थी, लेकिन 1909 से वह हिन्दी के प्रति रुझान रखने लगे। साप्ताहिक 'जीवन' में आपकी प्रारंभिक कथा-रचनाएं प्रकाशित हुईं। आपका बंगला-ज्ञान भी काफी अच्छा था। आचार्य द्विवेदी की प्रेरणा से आपने कुछ बंगला कहानियों का अनुवाद भी किया। 'सरस्वती' में सन्‌ 1913 में आपकी कहानी 'रक्षाबंधन' प्रकाशित हुई।  इन्होंने अपनी कहानियों के द्वारा पारिवारिक तथा सामाजिक समस्याओं को चित्रित किया है। कौशिक जी की भाषा अत्यंत सहज, भाव-प्रधान तथा मुहावरेदार है।
'चित्रकला','मणिमाला' और 'कल्लोल' इनके प्रमुख कहानी-संग्रह हैं। 'मां' एवं 'भिखारिणी' प्रमुख उपन्यास। प्रारंभिक पुस्तकें हैं- 'भीष्म' और 'गल्प मंदिर'। रासपुतिन की जीवनी और रूस की महारानी 'जरीना' का जीवन-चरित्र भी कौशिकजी ने लिखा। आपका निधन 1945 में हुआ।

कठिन शब्दार्थ

श्रावणी - रक्षाबंधन
चाँदी करना - पैसे कमाना
अबोध - नादान
इठलाना - इतराना
सिड़न - पगली, सनकी
व्यर्थ - बेकार
खरचना - खर्चा करना
यत्नपूर्वक - संभालकर
धनाढ्य - धनी, अमीर
दरिद्र - निर्धन, गरीब
ज्ञान शून्य - बेहोश

प्रश्नोत्तर

१.’रक्षाबंधन’ कहानी का सारांश लिखते हुए कहानी के उद्देश्य पर चर्चा कीजिए।
२.’रक्षाबंधन’ कहानी में लेखक ने जिन दो घटनाओं का चित्रण किया है, उन्हें संक्षेप में लिखिए।
















जयशंकर प्रसाद

मधुआ

लेखक परिचय

जयशंकर प्रसाद (३० जनवरी १८८९ - १४ जनवरी १९३७) हिन्दी कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की।
आधुनिक हिंदी साहित्य में प्रसाद जी का स्थान अत्यंत मह्त्त्वपूर्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरव करने लायक कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के चौथे स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक चाव से पढते हैं। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय सभ्यता-संस्कृति के गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएं की।
कामायनी इनकी प्रसिद्ध रचना है जिसे हिन्दी का महाकाव्य माना जाता है।
इनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रचुरता है किन्तु भाषा अत्यंत सहज,भाव-प्रधान तथा हृदयग्राही है।

प्रमुख रचनाएँ-
काव्य-चित्राधार, कानन कुसुम, प्रेम-पथिक, महाराणा का महत्व, झरना, करुणालय, आंसू, लहर एवं कामायनी।
नाटक- सज्जन, कल्याणी परिणय, प्रायश्चित, राज्यश्री, विशाख, कामना, जन्मेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, एक घूंट, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी।
कथा संग्रह- छाया, प्रतिध्वनी, आकाश दीप, आंधी, इंद्रजाल।
उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती।
निबंध संग्रह- काव्य और कला तथा अन्य निबंध।


कठिन शब्दार्थ

मनोविनोद - मनोरंजन
गड़रिया - भेड़-बकरी चराने वाला
कंगाल - बहुत गरीब
टीस - पीड़ा
रंगरेलियाँ - मौज-मस्ती
ऊँघना - झपकी लेना
कर्कश - कठोर
पाँत - कतार
निरीह - असहाय
नियति - भाग्य
इन्द्रजाल - जादू
पिण्ड छूटे - पीछा छूटे
जलपान - नाश्ता

प्रश्न
१.’मधुआ’ कहानी का सारांश लिखते लिखते हुए कहानी के उद्देश्य पर चर्चा कीजिए।
२.’मधुआ’ कहानी बाल-उत्पीड़न और बाल-मजदूरी की समस्या को रेखांकित करने वाली कहानी है-स्पष्ट 
    कीजिए।
३.शराबी मधुआ के सम्पर्क में कैसा आया और शराबी के जीवन में क्या परिवर्तन हुआ?



















जैनेंद्र कुमार

 पाजेब

लेखक-परिचय

जन्म- २ जनवरी १९०५ को अलीगढ़ के कौड़ियागंज गाँव में।
शिक्षा- प्रारंभिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल में हुई। मैट्रिक की परीक्षा इन्होने पंजाब से पास की। उच्च शिक्षा काशी विश्वविद्यालय में हुई। सन १९२१ में पढ़ाई छोड़कर ये असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गए।
जैनेंद्र जी ने हिन्दी साहित्य में मनोविज्ञान का समावेश किया। इन्होंने व्यक्ति के मन की गहराई में उतरने का प्रयास किया। इनकी भाषा सरल, सहज और व्यावहारिक है। इन्होंने अरबी, फ़ारसी, उर्दू और अँग्रेजी के शब्दों का खुलकर प्रयोग किया।

प्रकाशित कृतियाँ-
उपन्यास- परख-(१९२९), सुनीता (१९३५), त्यागपत्र (१९३७), कल्याणी (१९३९), विवर्त (१९५३), सुखदा (१९५३), व्यतीत (१९५३), जयवर्धन (१९५६)

कहानी संग्रह-
फाँसी (१९२९), वातायन (१९३०), नीलम देश की राजकन्या (१९३३), एक रात (१९३४), दो चिड़ियाँ (१९३५), पाजेब (१९४२), जयसंधि(१९४९),जैनेंद्र की कहानियाँ (सात भाग), जैनेंद्र कुमार की कहानियाँ (२०००)

निबंध संग्रह-
प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात,साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच विचार, काम प्रेम और परिवार, ये और वे।
कठिन शब्दार्थ
पाजेब - पाँव में पहनने का गहना
छुमकना - पैर से जमीन पर ताल देना
सुघड़ - सुडौल
सुकुब - सुन्दर
मनसूबा - इरादा
शहजोर - सबल
फरिश्ते - देवदूत
डोर - धागा
पिन्ना - चरखी
इजाज़त - स्वीकृति
रोष - गुस्सा
कुलच्छिनी - बुरे लक्षणों वाली
मगज़ मारना - दिमाग खाना
उचक्का - ठग
अव्वल - पहला
जब्र करना - काबू करना
मुरव्व्त - लिहाज या शर्म करना

प्रश्न
१.’पाजेब’ एक मनोविज्ञानिक कहानी है- सिद्ध करते हुए कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
२.जैनेंद्र मनोवैज्ञानिक कथाकार हैं। आशुतोष के बालमन की उन्होंने खूब परख की है। स्पष्ट कीजिए।




प्रेमचंद

बूढ़ी काकी

हिन्दी कथा साहित्य में प्रेमचंद का स्थान महत्त्वपूर्ण है। प्रेमचंद के लेखन पर गाँधीवादी विचारधारा का प्रभाव है। इन्होंने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा राष्ट्रीयता, किसान-मजदूर, स्त्री-दलित और हिन्दुस्तानी भाषा को साहित्य का विषय बनाया। प्रेमचंद का सम्पूर्ण कथा-साहित्य मानसरोवर के आठ भाग में प्रकाशित है। प्रेमचंद ने साहित्यिक पत्रिका हंस और जागरण का संपादन-कार्य भी किया। प्रेमचंद की भाषा में हिन्दी-उर्दू के आसान शब्दों का प्रयोग मिलता है जिसे हिन्दुस्तानी भाषा भी कहा जा सकता है। प्रेमचंद  का साहित्य आदर्श से यथार्थ की ओर अग्रसर होता है।
प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएँ हैं-पंच परमेश्वर, पूस की रात, दो बैलों की कथा,नशा,परीक्षा (कहानी)
                                          गबन, प्रेमाश्रम,रंगभूमि, निर्मला, सेवासदन, गोदान, कर्मभूमि (उपन्यास)।

शब्दार्थ

कालांतर - लम्बा समय
सब्जबाग - सुनहरे सपने
भलमनसाहत - सज्जनता
आश्वासन - भरोसा
व्यय - खर्च
कृपाण - तलवार
आरोपण - दोष लगाना
क्षुधावर्द्धक - भूख बढ़ाने वाले
दिक - परेशान
उद्विग्न - बेचैन
जेवनार गीत - भोज का गीत
टेंटुआ - गला
सदिच्छाएँ - अच्छी इच्छाएँ
विरदावलि - यश की गाथा
कलेजे में हूक उठना - हृदय में पीड़ा का अनुभव होना
सुवास - सु्गंध

प्रश्नोत्तर

१."बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है।"- प्रस्तुत कथन के आधार पर बूढ़ी काकी का चरित्र- चित्रण कीजिए।
२.’बूढ़ी काकी’ के द्वारा प्रेमचंद ने भारतीय समाज में एक वृद्धा की दयनीय स्थिति का सजीव वर्णन किया है। स्पष्ट कीजिए।