अरुण यह मधुमय देश हमारा
कवि - जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889 - 14 जनवरी 1937) हिन्दी कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की। प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी मे क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ उन्होंने संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन किया।
प्रसाद की रचनाओं में प्रेम, सौन्दर्य, देशभक्ति व प्रकृति-चित्रण का वर्णन मिलता है। उनकी आस्था भारतीय संस्कृति एवं मानवतावाद में रही है। वे राष्ट्रीय भावना तथा स्वदेश प्रेम को अधिक महत्त्व देते हैं।
प्रसाद की भाषा में संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
प्रमुख रचनाएँ - चित्राधार, झरना, लहर, प्रेम-पथिक, आँसू, कामायनी आदि।
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को, मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर -नाच रही तरु-शिखा मनोहर,
छिटका जीवन-हरियाली पर - मंगल-कुंकुम सारा।
प्रश्न
(i) यहाँ किस देश के बारे में कहा जा रहा है ? कहने वाले का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
(ii) शब्दार्थ लिखिए - मधुमय, अरुण, मंगल, विभा।
(iii) "जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को, मिलता एक सहारा।" - पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(iv) पद्यांश में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश में भारत देश के विषय में कहा जा रहा है। कहने वाली यूनानी शासक सेल्यूकस की पुत्री कार्नेलिया है जो मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त से प्रेम करती है और उसका विवाह चंद्रगुप्त से हो जाता है। भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य और सांस्कृतिक वैभव से प्रसन्न होकर कार्नेलिया भारत को अपना देश मानने लगती है। देश-प्रेम के इस गीत में प्रसाद ने एक विदेशिनी के माध्यम से भारत-भूमि की प्रशंसा की है।
(ii) मधुमय - मधुरता से भरा हुआ
अरुण - लाल रंग, यह लाल रंग उषा की लाली का रूप है
मंगल - शुभ
विभा - चमक, प्रकाश।
(iii) क्षितिज का अर्थ है वह काल्पनिक स्थान जहाँ धरती तथा आसमान मिलते हुए प्रतीत होते हैं। यहाँ अनजान क्षितिज का प्रयोग विदेशी शरणार्थियों के लिए किया गया है। कवि कहना चाहते हैं कि यह भारत भूमि की विशेषता है कि यहाँ अनजान परदेसी को भी जिन्हें हम नहीं जानते हैं, उनको भी भारत भूमि में आकर आश्रय मिल जाता है। उन्हें यह देश अपना प्रतीत होता है।
(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भारत देश की संस्कृति तथा प्राकृतिक सौन्दर्य की प्रशंसा की है। कवि कहते हैं कि भारत-भूमि ही वह पावन भूमि है जहाँ सर्वप्रथम ज्ञान और सभ्यता का सूर्य उदित हुआ। यह देश मधुरता से भरा है, यहाँ के लोगों के दिलों में सबके लिए अपनापन तथा प्रेम का भाव भरा हुआ है। भारत में प्रात:कालीन दृश्य अत्यंत मनोहर होता है कि ऐसा लगता है मानों वृक्षों की चोटियों पर सरस कमल के गर्भ जैसी लालिमा नृत्य कर रही हो। सारी हरी-भरी भूमि पर लाल किरणें इस प्रकार दिखाई देती हैं मानों चारों ओर धरती पर मंगलकारी कुंकुम बिखेर दिया हो। जीवन की समृद्धि पर गुलाल छिटका दिया गया हो।
निर्माण
कवि - हरिवंशराय बच्चन
सन् 1976 में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया।
हरिवंशराय बच्चन ने आशा, उत्साह और आस्था इन तीनों भावों को अपनी कविताओं में सफलता के साथ अभिव्यक्त किया। इन्होंने अपनी रचनाओं में इनसानी जीवन के सुख-दुख, आशा-निराशा, वेदना, संघर्ष आदि भावों को शब्द प्रदान किए। ’मधुशाला’ इनकी बहु प्रसिद्ध रचना है
- हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में अग्रणी हैं।
- निधन : १८ जनवरी २००३ को मुम्बई में।जिसका दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है।बच्चन की भाषा सहज और स्वाभाविक है जिसमें तत्सम के शब्दों का प्रयोग हुआ है।
प्रमुख रचनाएँ - मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, सतरंगिनी, मिलन यामिनी, हलाहल, सूत की माला, चार खेमे चौसठ खूँटे, बुद्ध और नाचघर आदि।
- कार्यक्षेत्र : इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे, राज्य सभा
- के मनोनीत सदस्य भी रहें।
कठिन शब्दार्थ
नीड़ - घोंसला
आह्वान - पुकार, बुलावा
धूलि-धूसर - धूल से भर जाने के कारण भूरा दिखाई देना
भीत - डरा हुआ
प्राची - पूर्व दिशा
विटप वर - श्रेष्ठ वृक्ष जैसे बरगद या पीपल
विनिर्मित - बना हुआ
कुद्ध - क्रोधित आकाश
पवन उनचास - ऋग्वेद में वायु देवताओं की संख्या उनचास बताई गई है
निस्तब्धता - खामोशी
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
(1)
वह चले झौंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़-समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप-वर,
हाय़! तिनकों से विनिर्मित
घोंसलों पर क्या न बीती,
डगमगाए जब कि कंकड़,
ईंट-पत्थर के महल-घर
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर!
सृष्टि का आह्वान फिर-फिर!
(i) झौंके शब्द से कवि का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
उ०- झौंके शब्द से कवि का तात्पर्य तूफ़ान के दौरान चलने वाली तेज़ हवाओं से है। तूफ़ान में हवाओं की गति बहुत तेज़ हो जाती है और आँधी के भयानक झोंके प्रलय का आह्वान करते हैं। कवि कहना चाहते हैं कि हम इनसानों के जीवन में भी ऐसे ही विपत्तियों और दुखों का ऐसा ही तूफ़ान या दौर चलता है।
(ii) ’भीम कायावान भूधर’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि वे क्यों काँपने लगते हैं?
उ०- भीम कायावान भूधर का शाब्दिक अर्थ है विशालकाय पर्वत। कवि कहना चाहते कि पर्वत अटल होते हैं किन्तु आँधी के भयानक झोंके में वे भी हिल उठते हैं। ठीक उसी प्रकार तन-मन-धन से सबल, साहसी और धैर्यवान व्यक्ति की स्थिति भी दुख, विपत्ति और पीड़ा के समय डाँवाडोल होने लगती है।
(iii) "हाय! तिनकों से विनिर्मित घोंसलों पर क्या न बीती"-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उ०- कवि कहना चाहते हैं कि जब आँधी के झोंकों में ईंट-पत्थरों से बने बड़े-बड़े घर-मकान भी डगमगा जाते हैं तो तिनकों से बने चिड़ियों के घोंसलों की क्या स्थिति होती होगी अर्थात् वे तो बिखरकर तिनका-तिनका हो जाते होंगे। दरअसल यहाँ कवि यह समझाना चाहते हैं कि विपत्ति और पीड़ा के समय साहसी और धैर्यवान व्यक्ति भी मानसिक और शारीरिक तौर पर टूट जाता है किन्तु उस स्थिति में तन-मन-धन से कमज़ोर व्यक्तियों की स्थिति कितनी दयनीय हो जाती होगी।
(iv) "बोल आशा के विहंगम, किस जगह पर तू छिपा था" -पंक्ति के माध्यम से कवि का क्या अभिप्राय है?
उ०- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि का यह अभिप्राय है कि जब आँधी के भयानक झोंकों ने चिड़ियों के घोंसलों को तहस-नहस कर दिया तब उन घोंसलों में रहने वाली चिड़ियाँ जान बचाने के लिए भागकर कहीं छिप गई थी, किन्तु प्रभात होते ही वही चिड़िया आकाश की ऊँचाइयों पर चढ़कर अपनी तान में आकाश के घमंड को अपने गर्व से नीचा दिखाती है और पुन: नई आशा के साथ अपने घोंसलों के निर्माण में जुट जाती हैं।अत: हम इनसानों को भी प्रलय की निस्तब्धता को चीरते हुए सृष्टि की पुकार पर आशान्वित होकर सृजन के सुख में डूब जाना चाहिए।
(2)क्रूद्ध नभ के वज्रदंतों
में उषा है मुस्कराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग-पंक्ति गाती,
एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उनचास को नीचा दिखाती।
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख,
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नवगान फिर-फिर।
नीड़ का निर्माण फिर-फिर!
सृष्टि का आह्वान फिर-फिर!
(i) "क्रूद्ध नभ के वज्रदंतों में" का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उ०- "क्रूद्ध नभ के वज्रदंतों में" द्वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि तूफ़ान के समय ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश अत्यंत क्रोधित है और गुस्से में वज्रदंत के समान बिजली कड़कती है, अर्थात् ऐसा प्रतीत होता है कि क्रोधित आकाश से अँधकार उतरकर इस धरती को निगलने का प्रयास करता है।
(ii) पक्षी किसके स्वर में स्वर मिलाकर गाते हैं? इस उदाहरण से कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है? समझाइए।
उ०- चिड़ियों की पंक्तियाँ आकाश के स्वर में स्वर मिलाकर गा उठती है। इस उदाहरण के द्वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि जिस प्रकार आकाश भले ही तूफ़ान के समय जोर-जोर से गरज रहा हो किन्तु प्रात:काल चिड़ियों का समूह अपने कलरव से आकाश की गर्जना को भी चुनौती देते हुए चोंच में तिनका दबाए पुन: नीड़ का निर्माण करती है। ठीक उसी प्रकार इनसान भी विनाश के भय से निर्माण करने के सुख को कभी नहीं छोड़ पाता।
(iii) "प्रलय की निस्तब्धता" का अर्थ क्या है? इसका अंत कैसे होता है? समझाइए।
उ०- प्रलय की निस्तब्धता से कवि का तात्पर्य विध्वंस की खामोशी से है। कवि कहना चाहते हैं कि जब संसार में प्रलय होता है तब घोर सन्नाटा पसर जाता है लेकिन उस सन्नाटे से सृष्टि की रचना के नए गीत उभरते है। यह संसार का अटल नियम है कि जब विध्वंस होता है तभी निर्माण भी होता है और हर निर्माण का विनाश भी निश्चित है। अत: हम इनसानों को नाश के भय से भयभीत नहीं होना चाहिए बल्कि नई आशा के साथ निर्माण की ओर अग्रसर होना चाहिए।
(iv) कवि का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताइए कि प्रक्रुति मानव को क्या संदेश देती है?
उ०- हरिवंशराय बच्चन ने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच. डी. पूरी की।
सन् 1976 में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया।
हरिवंशराय बच्चन ने आशा, उत्साह और आस्था इन तीनों भावों को अपनी कविताओं में सफलता के साथ अभिव्यक्त किया। इन्होंने अपनी रचनाओं में इनसानी जीवन के सुख-दुख, आशा-निराशा, वेदना, संघर्ष आदि भावों को शब्द प्रदान किए। ’मधुशाला’ इनकी बहु प्रसिद्ध रचना है
प्रकृति मानव को परिवर्तनशीलता का संदेश देती है। प्रकृति इनसानों को कर्मठ, धैर्यवान और साहसी बनने की प्रेरणा देती है। प्रकृति मानव-जगत को निर्माण का संदेश देती है।
मानवता
कवि - मैथिलीशरण गुप्त
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (१८८५ - १९६४) हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। श्री पं महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया |
गुप्त जी कबीर दास के भक्त थे। मैथिलीशरण गुप्त का जन्म ३ अगस्त सन १८८६ ई. में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता कौशिल्या बाई की तीसरी संतान के रुप में चिरगांव, झांसी में हुआ। घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। १२ वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कविता रचना आरम्भ किया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में भी आये। उनकी कवितायें खड़ी बोली में मासिक "सरस्वती" में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गई। प्रथम काव्य संग्रह "रंग में भंग' तथा वाद में "जयद्रथ वध' प्रकाशित हुई। उन्होंने बंगाली के काव्य ग्रन्थ "मेघनाथ वध" "ब्रजांगना" का अनुवाद भी किया। सन् १९१४ ई. में राष्टीय भावनाओं से ओत-प्रोत "भारत भारती" का प्रकाशन किया। उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई। सन् १९१६-१७ ई. में महाकाव्य "साकेत' का लेखन प्रारम्भ किया। इसी समय वे राष्ट्रपिता गांधी जी के निकट सम्पर्क में आये। 'यशोधरा' सन् १९३२ ई. में लिखी। गांधी जी ने उन्हें "राष्टकवि" की संज्ञा प्रदान की। सन् १९४१ ई. में व्यक्तिगत सत्याग्रह के अंतर्गत जेल गये। आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी.लिट. से सम्मानित किया गया। १९५२-१९६४ तक राज्य सभा के सदस्य मनोनीत हुये। सन् १९५३ ई. में भारत सरकार ने उन्हें "पद्म विभूषण' से सम्मानित किया। हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किये गये। मैथिलीशरण गुप्त को साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्म भूषण से १९५४ में सम्मानित किया गया।
१२ दिसम्बर १९६४ ई. को दिल का दौरा पड़ने से इनका निधन हो गया।
प्रमुख कृतियाँ
- साकेत,जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्ध्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत,झंकार,पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध, मैथिलीशरण गुप्त के नाटक, रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति,सैरन्ध्री, स्वदेश संगीत, हिडिम्बा, हिन्दू आदि।
कठिन शब्दार्थ
मर्त्य - मरणशील, नश्वर
वृथा - बेकार
पशु प्रवृत्ति - जानवरों जैसा व्यवहार
कृतार्थ - धन्य समझना
कूजना - मधुर ध्वनि करना
क्षुधार्थ - भूख मिटाने के लिए
करस्थ - हाथ पर रखा हुआ
परार्थ - दूसरों की भलाई के लिए
क्षितीश - राजा
जीव - आत्मा
महाविभूति - अलौकिक शक्ति, समृद्धि
पुनीत लोक वर्ग - आस्तिक समाज, पवित्र समाज
मदांध - धन और शक्ति के गर्व से अंधा
वित्त - धन, दौलत
परस्परावलंब - एक दूसरे के सहारे
अमर्त्य अंक - अनश्वरता की गोद, अमरता की गोद
अपंक - स्वच्छ, निर्मल
अभीष्ट - अभिलाषित, चाहा हुआ
हेलमेल - प्रेम, मित्रतापूर्वक
समर्थ - योग्य
तारना - पार करना, उद्धार करना
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
अरुण यह मधुमय देश हमारा
जयशंकर प्रसाद
(1889-1937)
कवि जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवियों में से एक हैं। घर पर शिक्षक रखकर इन्हें संस्कृत, हिन्दी, फारसी और उर्दू की शिक्षा दी गई। आरंभ में इन्होंने ब्रजभाषा में रचनाएँ लिखीं पर बाद में खड़ी बोली की ओर आकर्षित हुए। १९१८ में ’चित्राधार’ नाम से इनका प्रथम काव्य-संग्रह प्रकाशित हुआ। प्रसाद की कविताओं में प्रेम-सौन्दर्य, प्रकृति-चित्रण और राष्ट्रीय चेतना की सफल अभिव्यक्ति हुई है।
प्रसाद ने नाटकों का भी लेखन किया, जिनमें चंद्रगुप्त,अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी आदि प्रमुख हैं।
प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ - आँसू, लहर, कामायनी, झरना आदि।
कठिन शब्दार्थ
अरुण - लाल रंग (उषा की लाली का प्रतीक है)
क्षितिज - वह काल्पनिक स्थान जहाँ धरती और आसमान आपस में
मिलते हुए प्रतीत होते हैं।
सरस - रसपूर्ण
तामरस - लाल कमल
विभा - चमक
शिखा - पेड़ की चोटी
कुंकुम - गुलाल,रोली
सुरधनु - इंद्रधनुष
खग - पक्षी
नीड़ - घोंसला
मदिर - मतवाले
(1)
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
अरुण, यह मधुमय देश हमारा!
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को, मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर - नाच रही तरु-शिखा मनोहर,
छिटका जीवन-हरियाली पर - मंगल-कुंकुम सारा।
(i) प्रस्तुत गीत किस पुस्तक से लिया गया है और इसे किसने गाया है ?
उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उ० - प्रस्तुत गीत जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक " चंद्रगुप्त" से लिया गया है और इसे नाटक की नायिका कार्नेलिया ने गाया है जो सिकन्दर के प्रधान सेनापति सेल्यूकस की कन्या है। कार्नेलिया यूनानी सेना के साथ भारत भ्रमण करने आती है और वह भारत के अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य तथा भारतीयों की सहृदयता देखकर मुग्ध हो जाती है। कार्नेलिया का विवाह मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य से हुआ था।
(ii) अरुण शब्द की व्याख्या करते हुए बताइए कि कवि ने इसे मधुमय देश क्यों कहा है?
उ०- अरुण शब्द का शाब्दिक अर्थ है - लाल रंग या सूर्योदय-सूर्यास्त की लालिमा। कवि ने ग्रीस राजकुमारी कार्नेलिया के माध्यम से यह कहना चाहा है कि सूर्योदय के समय की लालिमा भारतवर्ष की समृद्धि, प्रेम, ज्ञान और सभ्यता का प्रतीक है क्योंकि भारतभूमि पर सर्वप्रथम ज्ञान और सभ्यता रूपी सूर्य का उदय हुआ है। कवि ने भारतभूमि को मधुमय की संज्ञा दी है क्योंकि भारतवासियों के हृदय में सभी के लिए अनुराग, प्रेम, अपनत्व और मिठास की भावना भरी हुई है।
(iii) " जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा" - कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उ०- क्षितिज का शाब्दिक अर्थ है - वह काल्पनिक स्थान जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए से प्रतीत हों। कवि कहना चाहते हैं कि भारत एक विशाल देश है जहाँ दुनिया भर के अपरिचित और अनजान लोगों को भी आश्रय प्राप्त होता है। अर्थात भारतवासी अतिथियों, शरणार्थियों आदि सभी को आदर-सम्मान के साथ आश्रय देने में तत्पर रहते हैं। कार्नेलिया को भी इस देश में अपनत्व और स्नेह की प्राप्ति होती है और यह देश अनजान नहीं बल्कि अपना-सा प्रतीत होने लगता है।
(iv) "छिटका जीवन-हरियाली पर - मंगल-कुंकुम सारा" - पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उ०- कवि ने प्रात:कालीन सूर्य की लालिमा की तुलना लाल रस परिपूर्ण कमल फूल के भीतरी भाग (गर्भ) की चटकदार लाल रंग से की है। सूर्य की किरणों की लालिमा वृक्षों की शिखाओं (ऊँची शाखाओं) पर फैली हुई है और वृक्ष प्रात:कालीन वायु के मन्द झोकों में मदमस्त होकर झूमते हुए से प्रतीत होते हैं। यह प्राकृतिक सौन्दर्य देखकर कार्नेलिया मंगलमय प्रभात जा अनुभव कर उल्लास से भर उठती है।
(2)
लघु
सुरधनु से पंख पसारे – शीतल मलय – समीर सहारे
उड़ते
खग जिस ओर मुँह किये – समझ नीड़ निज प्यारा।
बरसाती
आँखों के बादल – बनते जहाँ भरे करुणा जल,
लहरें
टकरातीं अनंत की – पाकर जहाँ किनारा।
अरुण
यह मधुमय देश हमारा।
[ICSE-2013]
(i)‘शीतल
मलय –
समीर सहारे’ कौन और क्यों भारत आते
हैं?
उ०- भारत के दक्षिण में मलय पर्वत है जहाँ चंदनवन है। कवि पक्षियों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भारतभूमि उन्हें अपना घर (घोंसला) सा प्रतीत होता है जिसके फलस्वरूप वे सतरंगी रूप-रंग वाले पंखों को फैलाए मलय पर्वत के निकट स्थिति चंदनवनों में बहने वाली सुगंधित वायु के सहारे उड़ते हुए भारतभूमि की ओर चले आते हैं। उन्हें लगता है कि यह पावन-भूमि उनका अपना नीड़ है।
(ii)
कवि ने बादलों के विषय में क्या बताया है तथा उसकी तुलना किससे की है? समझाकर लिखिए ।
उ०- कवि ने बादलों की तुलना भारतवासियों के सहृदय से की है जिनमें सम्पूर्ण दुनिया के मनुष्यों के लिए अपार प्रेम और करुणा का भाव भरा हुआ है। जिस प्रकार बादल में पानी भरा होता है और वह बारिश की बूँदों में तब्दील होकर सूखी धरती की प्यास बुझाता है ठीक उसी प्रकार भारतवासियों की आँखें दूसरों के लिए दया और करुणा से भरी होती हैं। इस करुणा रूपी जल से भरकर उनके हृदय रूपी बादल स्नेह और प्रेम-भाव से दूसरों के लिए उमड़ पड़ते हैं।
(iii)
’नीड’ और ’किनारा’ शब्दों का प्रयोग किस संदर्भ में हुआ है? यहाँ
कवि किसके विषय में, क्या सिद्ध करना चाहता है ?
उ०- ’नीड़’ और ’किनारा’ शब्दों का प्रयोग प्रस्तुत गीत में पावन भारतभूमि के लिए किया गया है। कवि इन शब्दों के द्वारा यह सिद्ध करना चाहता है कि भारतवासियों की उदारता और स्नेह की भावना दूसरे देशों के मनुष्यों को ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों को भी अपनी ओर आकर्षित करती है और वे भारतभूमि को अपना घर (नीड़) मानते हैं। दुनिया-भर के दुखी, अशांत और पीड़ित मनुष्यों को भारतभूमि (किनारा) पर आकर ही ज्ञान, सभ्यता, योग, आध्यात्म आदि दर्शन की प्राप्ति होती है। उन्हें यहाँ पहुँचकर आनंद की प्राप्ति होती है।
(iv) प्रस्तुत
गीत कहाँ से लिया गया है तथा इस गीत
का मूलभाव क्या है?
उ०- प्रस्तुत गीत जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक " चंद्रगुप्त" से लिया गया है और इसे नाटक की नायिका कार्नेलिया ने गाया है जो सिकन्दर के प्रधान सेनापति सेल्यूकस की कन्या है। प्रस्तुत गीत के द्वारा जयशंकर प्रसाद ने भारतभूमि के प्राकृतिक-सौन्दर्य, भारतवासियों की सहृदयता, स्नेह, प्रेम, करुणा और अपनत्व की भावना को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कवि का मानना है कि भारतभूमि में ही ज्ञान, योग, सभ्यता, आध्यात्म, दर्शन का जन्म हुआ है जिसने सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान का आलोक प्रदान किया है।अत: यह गीत कवि के हृदय में विद्यमान राष्ट्रीयता की भावना का प्रस्फुटन है।
स्वदेश प्रेम
रामनरेश त्रिपाठी
(1889-1962)
हिन्दी साहित्य में रामनरेश त्रिपाठी जी का नाम अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इन्होंने घर पर रहकर ही स्वतंत्र रूप से शिक्षा प्राप्त की तथा अंग्रेजी, गुजराती, संस्कृत, हिन्दी आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया।
त्रिपाठी जी भ्रमणशील स्वभाव के व्यक्ति थे जिसकी छाप इनकी कविताओं में स्पष्ट दिखाई पड़ती है। इन्होंने कविता , नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध, अनुवाद और आलोचना आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में लिखा। लोक-गीतों के क्षेत्रों में भी इन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रमुख रचनाएँ - पथिक, मिलन, स्वप्न(कविता) प्रेम लोक(नाटक)।
कठिन शब्दार्थ
प्रताप - तेज, पौरुष, वीरता
साक्षी - गवाह
प्रत्यक्ष - सामने
अगणित - अनगिनत
रण गर्जन - युद्ध की ललकार
विजय घोष - जीत की जय-जयकार
शोभित - सजा हुआ
हिमगिरिवर - पर्वतों में श्रेष्ठ, हिमालय
अर्णव पोत - समुद्री जहाज, जलयान
प्रमुदित - प्रसन्नतापूर्वक
निशि-वासर - रात-दिन
विषुवत रेखा - भूमध्य रेखा
तम - अंधकार
सकल विभवों - संपूर्ण सुख और ऐश्वर्य
आकर - खान, भंडार
वंशज - अंतान
अविष्ट - बचा हुआ
शत्रुंजय - शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला
उचारो - बोलो
सरिता - नदी
निष्प्राण - बेजान, प्राणहीन
विलसित - सुशोभित, सजा हुआ
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
(क)
विषुवत-रेखा का वासी जो,
जीता है नित हाँफ-हाँफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृ-भूमि पर।
ध्रुव-वासी, जो हिम में, तम में,
जी लेता है काँप-काँप कर।
वह भी अपनी मातृ-भूमि पर,
कर देता है प्राण निछावर।
(i) 'विषुवत-रेखा का वासी ' हाँफ-हाँफ कर क्यों जीता है?
उ०-पृथ्वी के धरातल को देखा जाए तो जो देश भूमध्य रेखा के आस-
पास बसे हुए हैं, वहाँ भीषण गर्मी पड़ती है। सूर्य की किरणें इन
देशों में सीधी पड़ती है। अत: वहाँ पर रहने वाले लोगों को भयानक
गर्मी और उमस का सामना करना पड़ता है। वे लोग काम करते
समय जल्दी थक जाते हैं और हाँफने लगते हैं। यह रेखा अफ़्रीका
महादेश के बीच से होकर गुजरती है।
(ii) ध्रुव-वासी काँप-काँपकर क्यों जीता है?
उ०-धरती के उत्तरीय और दक्षिणीय ध्रुव की जलवायु अत्यंत भीषण
और मानव के लिए कष्टदायक भी है। यहाँ सूर्य की रोशनी बहुत
कम दिखाई देती है जिसके कारण वहाँ प्राय: अंधकार रहता है।
ध्रुवों के देशों में बर्फ़ ही बर्फ़ रहता है। वनस्पति भी नाममात्र की
होती है। चारों ओर बर्फ़ होने और धूप के न होने के कारण ध्रुव-
वासी काँपते हुए जीने के लिए विवश होते हैं।
(iii) मातृ-भूमि से वहाँ के निवासी का इतना गहरा प्रेम क्यों होता है?
उ०-मातृ-भूमि से वहाँ के निवासी का गहरा संबंध इसलिए होता है
क्योंकि उसने उस भूमि पर जन्म लिया है, वहाँ उसका लालन-
पोषण हुआ है। उसने उस भूमि का अन्न-जल ग्रहण किया है।
वहाँ की मिट्टी में लेट-लेटकर बढ़ा हुआ है, चलना सीखा है ।
मातृ-भूमि के साथ मातृ शब्द जुड़ा हुआ है जो हमें माँ की याद
दिलाता है। प्रत्येक संतान अपनी माता का सम्मान करता है।
यही कारण है कि दुनिया का प्रत्येक निवासी अपनी मातृ- भूमि
से अत्यंत प्रेम करता है और उसके लिए हर तरह का त्याग कर
सकता है।
(iv) शब्दार्थ लिखिए-विषुवत रेखा, अनुराग, अलौकिक,हिम, तम,
निछावर।
उ०-भूमध्य रेखा, प्रेम, दिव्य, बर्फ़, अँधेरा, बलिदान।
(ख)
तुम तो, हे प्रिय बंधु, स्वर्ग-सी,
सुखद, सकल विभवों की आकर।
धरा-शिरोमणि मातृ-भूमि में,
धन्य हुए हो जीवन पाकर।
तुम जिसका जल-अन्न ग्रहण कर,
बड़े हुए लेकर जिसका रज।
तन रहते कैसे तज दोगे,
उसको, हे वीरों के वंशज।
(i) धरा-शिरोमणि शब्द से क्या तात्पर्य है? कवि ने भारत भूमि को धरा-
शिरोमणि क्यों कहा है?
(ii) कवि के अनुसार भारत भूमि में जन्म लेना जीवन को किस प्रकार
धन्य बनाता है? स्पष्ट कीजिए।
(iii) ’वीरों के वंशज’ कहकर कवि हमें किस कर्त्तव्य की ओर प्रेरित करता
है?
(iv) ’व्यक्ति की पहचान उसकी मातृ-भूमि से होती है।’-प्रस्तुत कथन के
आधार पर कविता का उपदेश स्पष्ट कीजिए।
कठिन शब्दार्थ
प्रताप - तेज, पौरुष, वीरता
साक्षी - गवाह
प्रत्यक्ष - सामने
अगणित - अनगिनत
रण गर्जन - युद्ध की ललकार
विजय घोष - जीत की जय-जयकार
शोभित - सजा हुआ
हिमगिरिवर - पर्वतों में श्रेष्ठ, हिमालय
अर्णव पोत - समुद्री जहाज, जलयान
प्रमुदित - प्रसन्नतापूर्वक
निशि-वासर - रात-दिन
विषुवत रेखा - भूमध्य रेखा
तम - अंधकार
सकल विभवों - संपूर्ण सुख और ऐश्वर्य
आकर - खान, भंडार
वंशज - अंतान
अविष्ट - बचा हुआ
शत्रुंजय - शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला
उचारो - बोलो
सरिता - नदी
निष्प्राण - बेजान, प्राणहीन
विलसित - सुशोभित, सजा हुआ
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
(क)
विषुवत-रेखा का वासी जो,
जीता है नित हाँफ-हाँफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृ-भूमि पर।
ध्रुव-वासी, जो हिम में, तम में,
जी लेता है काँप-काँप कर।
वह भी अपनी मातृ-भूमि पर,
कर देता है प्राण निछावर।
(i) 'विषुवत-रेखा का वासी ' हाँफ-हाँफ कर क्यों जीता है?
उ०-पृथ्वी के धरातल को देखा जाए तो जो देश भूमध्य रेखा के आस-
पास बसे हुए हैं, वहाँ भीषण गर्मी पड़ती है। सूर्य की किरणें इन
देशों में सीधी पड़ती है। अत: वहाँ पर रहने वाले लोगों को भयानक
गर्मी और उमस का सामना करना पड़ता है। वे लोग काम करते
समय जल्दी थक जाते हैं और हाँफने लगते हैं। यह रेखा अफ़्रीका
महादेश के बीच से होकर गुजरती है।
(ii) ध्रुव-वासी काँप-काँपकर क्यों जीता है?
उ०-धरती के उत्तरीय और दक्षिणीय ध्रुव की जलवायु अत्यंत भीषण
और मानव के लिए कष्टदायक भी है। यहाँ सूर्य की रोशनी बहुत
कम दिखाई देती है जिसके कारण वहाँ प्राय: अंधकार रहता है।
ध्रुवों के देशों में बर्फ़ ही बर्फ़ रहता है। वनस्पति भी नाममात्र की
होती है। चारों ओर बर्फ़ होने और धूप के न होने के कारण ध्रुव-
वासी काँपते हुए जीने के लिए विवश होते हैं।
(iii) मातृ-भूमि से वहाँ के निवासी का इतना गहरा प्रेम क्यों होता है?
उ०-मातृ-भूमि से वहाँ के निवासी का गहरा संबंध इसलिए होता है
क्योंकि उसने उस भूमि पर जन्म लिया है, वहाँ उसका लालन-
पोषण हुआ है। उसने उस भूमि का अन्न-जल ग्रहण किया है।
वहाँ की मिट्टी में लेट-लेटकर बढ़ा हुआ है, चलना सीखा है ।
मातृ-भूमि के साथ मातृ शब्द जुड़ा हुआ है जो हमें माँ की याद
दिलाता है। प्रत्येक संतान अपनी माता का सम्मान करता है।
यही कारण है कि दुनिया का प्रत्येक निवासी अपनी मातृ- भूमि
से अत्यंत प्रेम करता है और उसके लिए हर तरह का त्याग कर
सकता है।
(iv) शब्दार्थ लिखिए-विषुवत रेखा, अनुराग, अलौकिक,हिम, तम,
निछावर।
उ०-भूमध्य रेखा, प्रेम, दिव्य, बर्फ़, अँधेरा, बलिदान।
(ख)
तुम तो, हे प्रिय बंधु, स्वर्ग-सी,
सुखद, सकल विभवों की आकर।
धरा-शिरोमणि मातृ-भूमि में,
धन्य हुए हो जीवन पाकर।
तुम जिसका जल-अन्न ग्रहण कर,
बड़े हुए लेकर जिसका रज।
तन रहते कैसे तज दोगे,
उसको, हे वीरों के वंशज।
(i) धरा-शिरोमणि शब्द से क्या तात्पर्य है? कवि ने भारत भूमि को धरा-
शिरोमणि क्यों कहा है?
(ii) कवि के अनुसार भारत भूमि में जन्म लेना जीवन को किस प्रकार
धन्य बनाता है? स्पष्ट कीजिए।
(iii) ’वीरों के वंशज’ कहकर कवि हमें किस कर्त्तव्य की ओर प्रेरित करता
है?
(iv) ’व्यक्ति की पहचान उसकी मातृ-भूमि से होती है।’-प्रस्तुत कथन के
आधार पर कविता का उपदेश स्पष्ट कीजिए।
रामधारी सिंह " दिनकर "
(1908-1974)
राष्ट्रीय चेतना और देश-भक्ति से परिपूर्ण रामधारी सिंह दिनकर की कविता का हिन्दी साहित्य में अत्यंत प्रमुख स्थान है। दिनकर जी आधुनिक काल के राष्ट्रीय कवि माने जाते हैं। दिनकर जी की कविताओं में औरकी अभिव्यक्ति हुई है। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा दबे-कुचले शोषित व्यक्तियोंवाज भी उठायी है।
दिनकर जी को १९५२ में राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से भी अलंकृत किया है।
दिनकर जी की भाषा सहज और भाव-प्रधान है।
प्रमुख रचनाएँ - हुँकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी परशुराम की प्रतिज्ञा, उर्वशी आदि।
कविता - हिमालय
कठिन शब्दार्थ
नगपति - हिमालय
दिव्य - पवित्र
पुंजीभूत - एकत्रित, इकट्ठा
हिम-किरीट - बर्फ का मुकुट
व्योम - आकाश
चिर समाधि - लम्बी तपस्या
निर्बन्ध - बंधनमुक्त
उलझन - गुत्थी, समस्या
दग्ध - जलता हुआ
पंचनद - पाँच नदियों का समूह ( सतलज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी)
विगलित - पिघली हुई
क्रांत - आक्रमण करने वाले
कराल - भयानक
व्याल - सर्प, साँप
प्राची - पूरब दिशा
प्रांगण - आँगन
निनाद - ऊँचे स्वर में हुँकार भरना
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
१.कवि ने युग-युग से अजेय किसे कहा है? पद्यांश की प्रथम दो पंक्तियों
में उसके लिए किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है?
उ०-कवि ने युग-युग से अजेय पर्वतराज हिमालय को कहा है। कवि ने हिमालय के लिए निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया है:-
अजेय, निर्बन्ध, शुचि, गर्वोन्नत तथा महान।
२. महिमा का वितान निस्सीम व्योम में तानने से कवि का क्या तात्पर्य
है?
उ०-कवि कहना चाहते हैं कि हिमालय अपने गगनचुम्बी शिखरों द्वारा युगों से इस असीम आकाश में अपनी महिमा का विस्तार करता आ रहा है,
कहने का तात्पर्य यह है कि विश्व में पर्वतराज हिमालय सबसे ऊँचा है और आसमान से बातें करने वाली उसकी ऊँची चोटियाँ आकाश से उसकी महानता का विस्तार अर्थात् प्रचार-प्रसार कर रही हैं।
३. यतिवर शब्द का अर्थ लिखिए और बताइए कि कवि ने किन कारणों से
हिमालय को यतिवर कहा है?
उ०- यतिवर का अर्थ है-तपस्वी। कवि ने हिमालय का मानवीकरण किया है, जिस प्रकार एक तपस्वी अविचल, मौन तथा अपनी आँखें बंद किए हुए तपस्या में मग्न रहता है ठीक उसी प्रकार पर्वतराज हिमालय भी स्थिर भाव से देश की समस्याओं से अविचल समाधि में लीन है। हिमालय का आकार तिकोना है। इस कारण भी वह कवि को एक साधना-लीन तपस्वी की तरह प्रतीत हो रहा है।
४. निम्नलिखित शब्दों का अर्थ लिखिए-
निर्बन्ध - बंधनमुक्त
शुचि - पवित्र
निस्सीम - जिसकी कोई सीमा न हो
वितान - विस्तार, फैलाव
निदान - हल, उपाय
(1908-1974)
राष्ट्रीय चेतना और देश-भक्ति से परिपूर्ण रामधारी सिंह दिनकर की कविता का हिन्दी साहित्य में अत्यंत प्रमुख स्थान है। दिनकर जी आधुनिक काल के राष्ट्रीय कवि माने जाते हैं। दिनकर जी की कविताओं में औरकी अभिव्यक्ति हुई है। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा दबे-कुचले शोषित व्यक्तियोंवाज भी उठायी है।
दिनकर जी को १९५२ में राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से भी अलंकृत किया है।
दिनकर जी की भाषा सहज और भाव-प्रधान है।
प्रमुख रचनाएँ - हुँकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी परशुराम की प्रतिज्ञा, उर्वशी आदि।
कविता - हिमालय
कठिन शब्दार्थ
नगपति - हिमालय
दिव्य - पवित्र
पुंजीभूत - एकत्रित, इकट्ठा
हिम-किरीट - बर्फ का मुकुट
व्योम - आकाश
चिर समाधि - लम्बी तपस्या
निर्बन्ध - बंधनमुक्त
उलझन - गुत्थी, समस्या
दग्ध - जलता हुआ
पंचनद - पाँच नदियों का समूह ( सतलज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी)
विगलित - पिघली हुई
क्रांत - आक्रमण करने वाले
कराल - भयानक
व्याल - सर्प, साँप
प्राची - पूरब दिशा
प्रांगण - आँगन
निनाद - ऊँचे स्वर में हुँकार भरना
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
"युग-युग अजेय, निर्बन्ध, मुक्त!
युग-युग शुचि, गर्वोन्नत, महान!
निस्सीम व्योम में तान रहे
युग से किस महिमा का वितान?
कैसी अखंड यह चिर समाधि,
यतिवर! कैसा यह अमर ध्यान?
तू महाशून्य में खोज रहा
किस जटिल समस्या का निदान?
उलझन का कैसा विषम जाल?
मेरे नगपति! मेरे विशाल!"
१.कवि ने युग-युग से अजेय किसे कहा है? पद्यांश की प्रथम दो पंक्तियों
में उसके लिए किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है?
उ०-कवि ने युग-युग से अजेय पर्वतराज हिमालय को कहा है। कवि ने हिमालय के लिए निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया है:-
अजेय, निर्बन्ध, शुचि, गर्वोन्नत तथा महान।
२. महिमा का वितान निस्सीम व्योम में तानने से कवि का क्या तात्पर्य
है?
उ०-कवि कहना चाहते हैं कि हिमालय अपने गगनचुम्बी शिखरों द्वारा युगों से इस असीम आकाश में अपनी महिमा का विस्तार करता आ रहा है,
कहने का तात्पर्य यह है कि विश्व में पर्वतराज हिमालय सबसे ऊँचा है और आसमान से बातें करने वाली उसकी ऊँची चोटियाँ आकाश से उसकी महानता का विस्तार अर्थात् प्रचार-प्रसार कर रही हैं।
३. यतिवर शब्द का अर्थ लिखिए और बताइए कि कवि ने किन कारणों से
हिमालय को यतिवर कहा है?
उ०- यतिवर का अर्थ है-तपस्वी। कवि ने हिमालय का मानवीकरण किया है, जिस प्रकार एक तपस्वी अविचल, मौन तथा अपनी आँखें बंद किए हुए तपस्या में मग्न रहता है ठीक उसी प्रकार पर्वतराज हिमालय भी स्थिर भाव से देश की समस्याओं से अविचल समाधि में लीन है। हिमालय का आकार तिकोना है। इस कारण भी वह कवि को एक साधना-लीन तपस्वी की तरह प्रतीत हो रहा है।
४. निम्नलिखित शब्दों का अर्थ लिखिए-
निर्बन्ध - बंधनमुक्त
शुचि - पवित्र
निस्सीम - जिसकी कोई सीमा न हो
वितान - विस्तार, फैलाव
निदान - हल, उपाय
"रे, रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,
जाने दे उसको स्वर्ग, धीर!
पर, फिरा हमें गांडीव-गदा,
लौटा दे अर्जुन-भीम वीर!
कह दे शंकर से,आज करें
वे प्रलय नृत्य फिर एक बार।
सारे भारत में गूँज उठे,
’हर-हर-बम’ का फिर महोच्चार!"
१.युधिष्ठिर का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताइए कि कवि उन्हें स्वर्ग जाने
से क्यों नहीं रोकना चाहता है?
उ०-महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक महाराज पाँडु और कुंती के बड़े पुत्र
का नाम युधिष्ठिर था। वह धर्मराज,सत्यवादी और शांतिप्रिय थे। कवि
उनको स्वर्ग जाने से नहीं रोकना चाहते हैं क्योंकि भारतभूमि पर
भंयकर युद्ध के बादल छा गए हैं जिनसे लड़ने के लिए शांति-
प्रिय युधिष्ठिर जैसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
२.कवि को अर्जुन-भीम जैसे वीरों की आवश्यकता क्यों है? स्पष्ट कीजिए।
उ०-कवि को देश पर छाए विविध संकटों जैसे, विदेशी आक्रमण, गरीबी,
भुखमरी और बेरोजगारी से लड़ने के लिए वीर भीम और अर्जुन समान
महान धनुर्धर और गदाधारी वीरों की जरुरत है जो शत्रुओं का विनाश
कर सकें।
३.भगवान शिव का परिचय देते हुए बताइए कि हिमालय के साथ उनका
क्या संबंध है?
उ०-सम्पूर्ण ब्रह्मांड में तीन देवों की कल्पना की गई है-ब्रह्मा, विष्णु और
शंकर। भगवान शिव को सृष्टि का संहारक माना गया है जो धरती को
पापियों के भार से मुक्त करते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।
भगवान शिव का निवास-स्थल कैलाश है जो हिमालय की सर्वोच्च
चोटियों में से एक है।
क्या संबंध है?
उ०-सम्पूर्ण ब्रह्मांड में तीन देवों की कल्पना की गई है-ब्रह्मा, विष्णु और
शंकर। भगवान शिव को सृष्टि का संहारक माना गया है जो धरती को
पापियों के भार से मुक्त करते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।
भगवान शिव का निवास-स्थल कैलाश है जो हिमालय की सर्वोच्च
चोटियों में से एक है।
४.प्रलय-नृत्य का दूसरा नाम क्या है? भगवान शंकर उसे कब करते हैं?
कवि वह नृत्य फिर क्यों कराना चाहते हैं?
उ०-प्रलय नृत्य का दूसरा नाम तांडव है। धरती पर जब पापियों और
अत्याचारियों का भार बढ़ जाता है और धरती उसके भार से कहराने
लगती है तब भगवान शिव तांडव नृत्य करते हैं।
कवि यह नृत्य दोबारा इसलिए करवाना चाहते हैं क्योंकि देश पर एक
बार फिर से आततायियों का नियंत्रण होता जा रहा है। देश पर विदेशी
आक्रमण का ख़तरा मँडरा रहा है। अत: कवि चाहते हैं कि कैलाश पर
विराजमान भगवान शंकर एक बार फिर तांडव करें ताकि देश का नव-
निर्माण संभव हो सके। जब वे शत्रुओं का नाश करेंगे तो भारत के नव-
युवकों में नई शक्ति, नई प्रेरणा और नए उल्लास का संचार होगा।
कवि वह नृत्य फिर क्यों कराना चाहते हैं?
उ०-प्रलय नृत्य का दूसरा नाम तांडव है। धरती पर जब पापियों और
अत्याचारियों का भार बढ़ जाता है और धरती उसके भार से कहराने
लगती है तब भगवान शिव तांडव नृत्य करते हैं।
कवि यह नृत्य दोबारा इसलिए करवाना चाहते हैं क्योंकि देश पर एक
बार फिर से आततायियों का नियंत्रण होता जा रहा है। देश पर विदेशी
आक्रमण का ख़तरा मँडरा रहा है। अत: कवि चाहते हैं कि कैलाश पर
विराजमान भगवान शंकर एक बार फिर तांडव करें ताकि देश का नव-
निर्माण संभव हो सके। जब वे शत्रुओं का नाश करेंगे तो भारत के नव-
युवकों में नई शक्ति, नई प्रेरणा और नए उल्लास का संचार होगा।
(1865-1947)
हिन्दी साहित्य में अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध का स्थान प्रमुख है। १८८९ में कानून की परीक्षा पास करने के पश्चात इन्होंने ३४ वर्ष तक सरकारी नौकरी की। १९३२ में इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया। इन्हें हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, फारसी, उर्दू, बंगला आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। इन्हें खड़ी बोली के प्रथम महाकवि होने का गौरव प्राप्त है।
अरिऔध जी ने उपन्यास, समीक्षा आदि विधाओं में भी रचनाएँ की। इनकी भाषा सहज तथा भाव-प्रधान है। इनकी भाषा में संस्कृत शब्दों से युक्त खड़ी बोली को अपनाया है।
प्रमुख रचनाएँ - प्रियप्रवास( खड़ी बोली में प्रथम महाकाव्य), वैदेही वनवास, रस-कलश, अधखिला फूल(उपन्यास)।
गोपाल सिंह नेपाली
(1903-1963)हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार। इन्हें अंग्रेजी, नेपाली और हिन्दी का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने हिन्दी सिनेमा के लिए भी कार्य किया। इन्होंने फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। किन्तु इनका मन प्रकृति में ज्यादा रमा इसलिए प्रकृति के प्रति यह उत्साहपूर्ण प्रेम इनके काव्यों में मुखरित हुआ है।
इनकी भाषा सहज, सरल, सरस तथा ओजपूर्ण है।
प्रमुख रचनाएँ-उमंग, पंछी, रागिनी, सावन, कल्पना, नवीन, हिमालय ने पुकारा आदि।
कविता - नवीन कल्पना करो
शब्दार्थ
निज - अपना
सिंगार - सजना-सँवरना, श्रृंगार
मधुमास - वसंत ऋतु
सद्य समृद्धि - अविलम्ब खुशहाली
निखार - चमक
फूट - भेदभाव
कोटि - करोड़
मर्म - हृदय, दिल
वसुंधरा - पृथ्वी
तरी - तराई, नदियों के निकट की उपजाऊ भूमि
समष्टि - संसार, सम्पूर्ण समाज
कृतज्ञ - एहसानमंद
अमोघ - अचूक
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
तन की स्वतंत्रता चरित्र का निखार है
मन की स्वतंत्रता विचार की बहार है
घर की स्वतंत्रता समाज का सिंगार है
पर देश की स्वतंत्रता अमर पुकार है
टूटे कभी न तार यह अमर पुकार का
तुम साधना करो, अनन्त साधना करो,
तुम साधना करो।
(i) ’चरित्र का निखार’ कथन का भाव स्पष्ट करते हुए बताइए कि उसे तन
की स्वतंत्रता क्यों कहा गया है?
की स्वतंत्रता क्यों कहा गया है?
उ० - कवि के अनुसार देश की स्वतंत्रता व्यक्ति-स्वतंत्रता पर निर्भर
होती है और व्यक्ति की स्वतंत्रता का तात्पर्य उसके तम और
मन की स्वतंत्रता से है। कवि कहना चाहते हैं जिस व्यक्ति का
तन स्वतंत्र है अर्थात् उसका शरीर किसी अन्य के वश में नहीं
होता है, स्वतंत्र होता है उस व्यक्ति का चरित्र उज्ज्वल होता है।
जिस व्यक्ति का चरित्र उज्ज्वल होता है वह अपने देश के विकास
में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने में समर्थ होता है।
होती है और व्यक्ति की स्वतंत्रता का तात्पर्य उसके तम और
मन की स्वतंत्रता से है। कवि कहना चाहते हैं जिस व्यक्ति का
तन स्वतंत्र है अर्थात् उसका शरीर किसी अन्य के वश में नहीं
होता है, स्वतंत्र होता है उस व्यक्ति का चरित्र उज्ज्वल होता है।
जिस व्यक्ति का चरित्र उज्ज्वल होता है वह अपने देश के विकास
में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने में समर्थ होता है।
(ii) ’विचार की बहार’ का अर्थ समझाइए। स्पष्ट कीजिए कि वह मन की
स्वतंत्रता कैसे है?
स्वतंत्रता कैसे है?
उ० - कवि कहना चाहते हैं कि स्वतंत्र तन में ही स्वतंत्र मन का वास
संभव है। यदि व्यक्ति गुलाम है तो उसके मन पर किसी और का
नियंत्रण होता है, उसकी मानसिकता भी गुलामों जैसी हो जाती है
परन्तु स्वतंत्र व्यक्ति का मन भी स्वतंत्र होता है जिसमें स्वतंत्र
और सुंदर विचारों का समावेश होता है। किसी भी देश के विकास
के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वहाँ के नागरिक विचारवान
हों।
संभव है। यदि व्यक्ति गुलाम है तो उसके मन पर किसी और का
नियंत्रण होता है, उसकी मानसिकता भी गुलामों जैसी हो जाती है
परन्तु स्वतंत्र व्यक्ति का मन भी स्वतंत्र होता है जिसमें स्वतंत्र
और सुंदर विचारों का समावेश होता है। किसी भी देश के विकास
के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वहाँ के नागरिक विचारवान
हों।
(iii) देश की स्वतंत्रता को अमर पुकार क्यों कहा गया है? स्पष्ट कीजिए।
उ० - कवि कहना चाहते हैं कि देश की स्वतंत्रता उस आह्वान पर
निर्भर है जो हमें उसकी रक्षा के लिए सजग करता है। कहने का
तात्पर्य है कि देशभक्ति की भावना अमर पुकार की तरह है जो
हर देशवासी के हृदय में गूँजनी चाहिए। कवि कहते हैं कि
देशभक्ति की यह पुकार कभी भी समाप्त नहीं होनी चाहिए
क्योंकि जब तक देशभक्ति और स्वतंत्रता की पुकार देशवासियों
के हृदय में गूँजती रहेगी तब तक देश की आजादी को कोई खतरा
नहीं होगा। अत: देश के नवयुवकों को देशवासियों में स्वतंत्रता
की भावना भरने के लिए सजग, निष्ठापूर्वक अंतहीन प्रयास
करते रहना पड़ेगा।
उ० - कवि कहना चाहते हैं कि देश की स्वतंत्रता उस आह्वान पर
निर्भर है जो हमें उसकी रक्षा के लिए सजग करता है। कहने का
तात्पर्य है कि देशभक्ति की भावना अमर पुकार की तरह है जो
हर देशवासी के हृदय में गूँजनी चाहिए। कवि कहते हैं कि
देशभक्ति की यह पुकार कभी भी समाप्त नहीं होनी चाहिए
क्योंकि जब तक देशभक्ति और स्वतंत्रता की पुकार देशवासियों
के हृदय में गूँजती रहेगी तब तक देश की आजादी को कोई खतरा
नहीं होगा। अत: देश के नवयुवकों को देशवासियों में स्वतंत्रता
की भावना भरने के लिए सजग, निष्ठापूर्वक अंतहीन प्रयास
करते रहना पड़ेगा।
(iv) कवि परिचय लिखिए।
उ० - हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार। इन्हें अंग्रेजी, नेपाली और हिन्दी का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने हिन्दी सिनेमा के लिए भी कार्य किया। इन्होंने फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। किन्तु इनका मन प्रकृति में ज्यादा रमा इसलिए प्रकृति के प्रति यह उत्साहपूर्ण प्रेम इनके काव्यों में मुखरित हुआ है।
इनकी भाषा सहज, सरल, सरस तथा ओजपूर्ण है।
प्रमुख रचनाएँ-उमंग, पंछी, रागिनी, सावन, कल्पना, नवीन, हिमालय ने पुकारा आदि।
(1914-1985)
भवानीप्रसाद मिश्र गाँधीवादी विचारधारा के मानवतावादी कवि हैं। इनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व ग्रामीण जीवन से संबंधित था जिसके कारण इनकी भाषा में सादगी तथा सरलता है। इनकी भाषा में उर्दू-फारसी तथा संस्कृत के प्रचलित शब्दों का सटीक प्रयोग हुआ है।
स्वतंत्ता संग्राम में सक्रिय होने के कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा। इन्होंने मासिक पत्रिका कल्पना का संपादन, आकाशवाणी के विविध भारती कार्यक्रम का निर्देशन, सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय (साहित्य) का संपादन कार्य भी किया। प्रथम बार इनकी कविताएँ दूसरा सप्तक में प्रकाशित हुईं। इनकी कविताओं का मुख्य स्वर जन-कल्याण का है।
प्रमुख रचनाएँ - बुनी हुई रस्सी ( साहित्य अकादमी ), गीतफरोश, चकित है दुख, अँधेरी कविताएँ,
त्रिकाल संध्या आदि।
शब्दार्थ
प्रदक्षिणा - परिक्रमा, चक्कर लगाना
प्रभामयी - चमकदार, रोशनी से पूर्ण
सीचेंगी - हरा-भरा बनाएँगी
आभा - चमक
मृत्युंजयी - मृत्यु पर विजय
झुरेगी - धीरे-धीरे आएगी
वातायन - खिड़की, झरोखा
स्निग्ध - कोमल
आश्वास-मरन - निर्भय मृत्यु, डर विहीन मरण
स्फूर्ति - ताजगी
मढ़ना - जड़ना, सटाना, चिपकाना
प्राण शक्ति - जीवन की ऊर्जा
चरणों पर चढ़ना - समर्पण करना
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
(क)
"हर परिवर्तन से प्राण-शक्ति ले सकते हैं।
हर शक्ति स्नेह के चरणों पर चढ़ क्यों न जाए,
इसलिए उदय का क्षण जो आने वाला है,
पंछी उसमें उल्लास, गीत यदि नहीं गाये-
तो धरती से नभ तक की सारी सृष्टि व्यर्थ,
तो नभ से धरती तक का वातावरण लाज,
तुम उदय काल में मौन नहीं रह जाना मन,
कल के जैसा निकलेगा सूरज अभी आज।
(i) परिवर्तन से प्राण-शक्ति कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
(ii) उदय के क्षण में हमें क्या करना चाहिए? कविता के संदर्भ में बताइए।
(iii) उदय काल में मौन क्यों नहीं रहना चाहिए?
(iv) कवि परिचय दीजिए।
(i)उ० परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है। यह परिवर्तन मानव जीवन को प्राण-शक्ति देता है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप दिन-रात होते हैं। दिनभर कर्म करने के बाद रात को कर्म की थकान को उतारने के लिए प्रकृति उचित वातावरण का निर्माण करती है। इससे मनुष्य स्फूर्ति, जोश और शक्ति प्राप्त करने में
सफल होता है जिसकी सहायता से वह नए दिन की शुरुआत करता है।
(ii)उ० कवि का मानना है कि मानव जीवन में उदय का क्षण अत्यंत महत्त्वपूर्ण और उल्लास से भरा होता है। इस क्षण में मनुष्य को नये उत्साह, जोश और स्फूर्ति के साथ अपने दिन के कार्य में लग जाना चाहिए है। यह क्षण आशा की नयी किरण लेकर आता है। अत: मनुष्य को अपने कर्म-पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।
(iii)उ० कवि का मानना है कि उदय का क्षण मानव जीवन में नयी ताज़गी, उमंग और जोश भर देता है। सम्पूर्ण
प्रकृति सूर्य की स्वर्णिम आभा में डूब जाती है। हर तरफ़ सौन्दर्य की अनुभूति होती है। पंछी अपने-अपने घोंसलों से बाहर आती हैं और कलरव करती हुई आसमान में ऊँची उड़ान भरती है। ऐसे समय यदि मनुष्य निराश मन से प्रकृति का स्वागत करेगा तो नभ से लेकर धरती तक के सम्पूर्ण सौन्दर्य का अर्थ बेमतलब हो जाएगा। अत: कवि मानव-जाति से निवेदन करता है कि हमें भी पंछियों की तरह खुले मन से उदय के क्षण का अभिनन्दन करना चाहिए।
(iv)उ० भवानीप्रसाद मिश्र गाँधीवादी विचारधारा के मानवतावादी कवि हैं। इनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व ग्रामीण जीवन से संबंधित था जिसके कारण इनकी भाषा में सादगी तथा सरलता है। इनकी भाषा में उर्दू-फारसी
तथा संस्कृत के प्रचलित शब्दों का सटीक प्रयोग हुआ है।
स्वतंत्ता संग्राम में सक्रिय होने के कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा। इन्होंने मासिक पत्रिका कल्पना का संपादन, आकाशवाणी के विविध भारती कार्यक्रम का निर्देशन, सम्पूर्ण गाँधी साहित्य का संपादन कार्य
भी किया।
प्रमुख रचनाएँ - बुनी हुई रस्सी ( साहित्य अकादमी ), गीतफरोश, चकित है दुख, अँधेरी कविताएँ, त्रिकाल संध्या आदि।
(ख)
कल की तरह आज भी सूरज निकलेगा,
होगी प्रदक्षिणा नभ के पथ पर प्रभामयी
जो भाग्यवान हैं उनकी आँखें सींचेंगी,
उनकी आभा में शीतल किरनें मृत्युंजयी।
(i) पद्यांश का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उ० - ’उदय का क्षण’ कविता में कवि ने मानव को प्रकृति के माध्यम से प्रेरणा देनी चाही अहि। कवि का मानना है कि प्रकृति प्रत्येक स्तर पर परिवर्तनशील है। हमें प्रकृति में होने वाले हर परिवर्तन से जीवन-ऊर्जा प्राप्त करनी चाहिए। सूर्य का उगना भी प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का अहम हिस्सा है।
(ii) सूर्य निकलने से कवि ने क्या प्रभाव दिखाना चाहा है?
उ० - परिवर्तन सृष्टि का अटल नियम है। सूर्योदय का होना भी प्रकृति की नियमावली का एक अहम हिस्सा है, जिसके फलस्वरूप दिन-रात का होना संभव होता है। सूर्य के उदय होते ही अंधकार की सत्ता समाप्त हो जाती है । सूर्य की किरणें मृत्युंजयी होती है जिनसे जीवन की ऊर्जा का संचार होता है।
(iii) भाग्यवान से क्या अभिप्राय है? कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उ० - सूर्योदय का क्रम अनादि काल से चला आ रहा है क्योंकि सूर्य की किरणें शाश्वत हैं। वे कभी मरती ही नहीं। किन्तु मानव तो मरणशील प्राणी है इसलिए वे व्यक्ति जो प्रात:काल उदय होते हुए सूर्य की शीतल व जीवन-दायिनी किरणों के प्रकाश से अपनी आँखों को तृप्त करते हैं, उन्हें ही कवि भाग्यवान कहते हैं। प्रात:काल की किरणों को मृत्युंजयी किरणों की संज्ञा भी दी गई है क्योंकि इनमें जीवन-ऊर्जा भरी होती है। सूर्य का उदय नई स्फूर्ति, उल्लास व कर्मशीलता का उत्साह लेकर आता है। सवेरा भाग्यवान मनुष्य के लिए कर्म के पथ पर बढ़ने के लिए एक उत्साहपूर्ण पुकार है।
(iv) शाम के अंधियारे के बाद क्या होगा?
उ० - सूर्यास्त के पश्चात धीरे-धीरे संध्या रात्रि में बदल जाएगी। ऐसे अंधकार में दिन में खींची हुई सूर्य की किरणें चाँदनी का रूप ले लेंगी और पूरब दिशा के झरोखे से आकर हमारी रात्रि रूपी सुख-सेज पर चाँदनी की तरह बिछकर शीतलता और आलस्य प्रदान करेगी। कवि यह कहना चाहते हैं कि सूर्य की किरणें नई स्फूर्ति, जोश, उमंग, ताज़गी का उत्साह लेकर आती है ताकि हम पूरी कर्मठता के साथ अपने कर्म में जुट जाए। वहीं रात्रि चाँद की शीलत व आलस्यपूर्ण किरणें लेकर आती है जो हमारी शैय्या पर बिछ जाती है ताकि हम विश्राम करके अगली सुबह के लिए तैयार हो जाएँ।
सुमित्रानन्दन पंत
(1900-1977)
सुमित्रानन्दन पंत हिन्दी के प्रमुख छायावादी कवि हैं जिन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता है। पंत को रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गाँधी और श्री अरविंद घोष जैसे महान व्यक्तित्व का सानिध्य मिला। १९२१ में इन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी तथा इनके संघर्षमय जीवन का आरंभ भी हुआ। १९६१ में भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया।
इनकी कविताओं का मुख्य आकर्षण प्रकृति सौन्दर्य रहा है। इनकी भाषा अत्यंत सहज तथा मधुरता से परिपूर्ण है।
प्रमुख रचनाएँ - कला और बूढ़ा चाँद ( साहित्य अकादमी ), चिदम्बरा ( ज्ञानपीठ पुरस्कार ), वीणा, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, ग्राम्या आदि।
(1900-1977)
सुमित्रानन्दन पंत हिन्दी के प्रमुख छायावादी कवि हैं जिन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता है। पंत को रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गाँधी और श्री अरविंद घोष जैसे महान व्यक्तित्व का सानिध्य मिला। १९२१ में इन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी तथा इनके संघर्षमय जीवन का आरंभ भी हुआ। १९६१ में भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया।
इनकी कविताओं का मुख्य आकर्षण प्रकृति सौन्दर्य रहा है। इनकी भाषा अत्यंत सहज तथा मधुरता से परिपूर्ण है।
प्रमुख रचनाएँ - कला और बूढ़ा चाँद ( साहित्य अकादमी ), चिदम्बरा ( ज्ञानपीठ पुरस्कार ), वीणा, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, ग्राम्या आदि।
सूरदास
(1478-1563)
सूरदास कृष्ण भक्ति काव्यधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इन्होंने वल्लभाचार्य से दीक्षा ली और उन्हीं की आज्ञा से श्रीकृष्ण की भक्ति-लीला में डूब गए। सूर के पदों में वात्सक्य और श्रृंगार रस का बहुत सुंदर चित्रण हुआ है। सूर ने कृष्ण के बाल रूप का अत्यंत मनमोहक रूप प्रस्तुत किया है। सूर सगुण भक्तिधारा के कवि है जिनके लिए ईश्वर का एक रूप है जिसकी भक्ति की जा सकती है।
सूर की भाषा ब्रजभाषा है जिसमें रूपक, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
प्रमुख रचनाएँ - सूरसागर, सूरसारावली तथा साहित्य लहरी आदि।
(1478-1563)
सूरदास कृष्ण भक्ति काव्यधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इन्होंने वल्लभाचार्य से दीक्षा ली और उन्हीं की आज्ञा से श्रीकृष्ण की भक्ति-लीला में डूब गए। सूर के पदों में वात्सक्य और श्रृंगार रस का बहुत सुंदर चित्रण हुआ है। सूर ने कृष्ण के बाल रूप का अत्यंत मनमोहक रूप प्रस्तुत किया है। सूर सगुण भक्तिधारा के कवि है जिनके लिए ईश्वर का एक रूप है जिसकी भक्ति की जा सकती है।
सूर की भाषा ब्रजभाषा है जिसमें रूपक, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
प्रमुख रचनाएँ - सूरसागर, सूरसारावली तथा साहित्य लहरी आदि।
तुलसीदास
(1497-1623)
बालकृष्ण राव
(1913-1937)
बालकृष्ण राव हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि हैं। ये आकाशवाणी के डाइरेक्टर जनरल और गोरखपुर तथा आगरा विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर के पदों पर काफी समय तक कार्य करते रहे। इन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन कार्य भी किया है जिसमें कादम्बिनी प्रमुख है।
इनकी काव्य-भाषा अत्यंत सहज तथा भाव-प्रधान है।
इनकी प्रमुख रचनाएँ-कौमुदी, आभास, कवि और छवि, अर्द्धशती, तीसरा सप्तक आदि।
कबीरदास
(1398-1495)
कबीरदास भक्तिकाल के संत काव्य-धारा के प्रमुख कवियों में से एक हैं। कबीर निरक्षर थे। कबीर मूलत: संत थे। उन्होंने ईश्वर का निराकार स्वरूप स्वीकार किया है तथा मूर्ति-पूजा, कर्मकांड तथा बाहरी आडम्बरों का खुलकर विरोध किया। इन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता का नारा भी बुलन्द किया। कबीर ने हर तरह की रूढ़िओं तथा धार्मिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई।
कबीर की भाषा में अरबी, फारसी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी आदि का मिश्रण है। इसलिए इनकी भाषा को सधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी भी कहा जाता है।
कबीर की सभी रचनाएँ कबीर-ग्रन्थावली में संकलित हैं जो बीजक, सबद और रमैनी के नाम से तीन काव्य-संग्रहों में हैं।
अब्दुर्रहीम खानखाना
(1556-1627)
रहीम अकबर के नौ रत्नों में से एक थे। वे अकबर के प्रधान सेनापति और मंत्री भी थे। रहीम दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। इन्होंने अपने दोहों के माध्यम से नीतिपरक मूल्यों की अभिव्यक्ति की है। इनकी रचनाओं में भक्ति तथा श्रृंगार की भी सुन्दर व्यंजना हुई है।
इनकी भाषा में हिन्दी, फ़ारसी तथा संस्कृति के शब्दों का समावेश है। इन्होंने ब्रज और अवधी भाषा का प्रयोग किया।
प्रमुख रचनाएँ-रहीम सतसई, रहीम रत्नावली, श्रृंगार सतसई, बरवै-नायिका भेद, मदनाष्टक आदि।