निर्मला



निर्मला
 

लेखक - प्रेमचंद

 



प्रेमचंद की उपन्यास-कला
प्रेमचंद ने ही हिन्दी उपन्यास का वास्तविक स्वरूप निर्धारित
किया। उन्होंने उपन्यास के दो स्वरूप को प्रमुखता दी-
मनोरंजन और मनोरंजन के साथ सुधारवादी भावना।
प्रेमचंद के उपन्यासों में जिस औपन्यासिक शिल्प के दर्शन हुए,
उसका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है-


कथावस्तु-
प्रेमचंद के उपन्यासों की कथा-वस्तु आम जीवन से
संबंधित है। उसमें यथार्थ और आदर्श का बहुत अच्छा समावेश
है। इस प्रकार उनके उपन्यासों में तत्कालीन भारत की सम्पूर्ण
तस्वीर दिखाई पड़ती है।
 
चरित्र-चित्रण या पात्र -
प्रेमचंद के उपन्यासों के पात्र मानवीय
गुण-दोषोंसे युक्त वास्तविक जीवन से जुड़े हुए सहज मानव हैं।
उनके अधिकांश पात्र गाँवों के शोषित किसान और पूँजीपतियों
द्वारा त्रसित मजदूर हैं। प्रेमचंद की सहानुभूति स्त्री और दलित
 पात्रों के प्रति ज्यादा रही है।
 
कथोपकथन-
कथोपकथन उपन्यास का प्रमुख तत्व है।
 संवाद के द्वारा ही कथा-वस्तु प्रवाहित होती है, चरित्र का उद्घाटन होता है, भाषा में गति आती है। प्रेमचंद के सभी पात्र अपने स्तर के अनुसार भाषा का प्रयोग
करतेहैं।
देश-काल एवं वातावरण-उपन्यास में देश-काल का चित्रण

अनिवार्य है। प्रेमचंद के उपन्यासों में देश-काल का सजीव चित्रण हुआ है। प्रेमचंद का समय भारत की गुलामी का समय था। अत: उन्होंने अपने कथा-साहित्य के द्वारा तत्कालीन भारत की तस्वीर प्रस्तुत की है।

भाषा- शैली-
प्रेमचंद की भाषा हिन्दुस्तानी भाषा है जिसमें हिन्दी और उर्दू के सहज शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। उनकी भाषा लोक व्यवहार की भाषा होते हुए भी साहित्यिक, सहज एवं बोधगम्य है। प्रेमचंद की भाषा में लचक और कोमलता दोनों मौजूद है जो उन्हें कथा-सम्राट बनाती है।

उद्‌देश्य-
प्रेमचंद का सम्पूर्ण कथा-साहित्य एक मिशन की तरह है,जिसमें स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज़ भी है तो दूसरी तरफ़ किसान-मज़दूरों तथा स्त्री-दलितों की दयनीय दशा का चित्रण भी है। प्रेमचंद के कथा-साहित्य का मूल उद्देश्य मानव-जाति का कल्याण है।



लेखक - परिचय
प्रेमचंद को हिन्दी कहानियों का सम्राट कहा जाता है। प्रेमचंद का कथा-साहित्य २०वीं सदी की भारतीय पीड़ा, त्रासदी,शोषण
और प्रतिरोध का महान दस्तावेज है।
 
प्रेमचंद का सम्पूर्ण कथा-साहित्य चार स्तम्भों पर टिका है-


१.राष्ट्रीय आंदोलन


२.किसान - मजदूर


३.स्त्री - दलित


४. हिन्दुस्तानी भाषा

 




 
तहरीर मुंशी प्रेमचंद की
निर्देशक - गुलज़ार
(इंटरनेट-यू ट्‌यूब के सौजन्य से)
 
 
(भाग - १)
 
(भाग - २)
 
(भाग - ३)
 
(भाग - ४)
 
(भाग - ५)
 
(भाग - ६)
 
 
 


















































































































































































































































अध्याय -२ ४
 
* मुंशी तोताराम सियाराम के चले जाने से आहत थे और सारा दोष निर्मला पर मढ़ देते हैं।
 
*मुंशी जी सियाराम को खोजना चाहते हैं। वे निर्मला से कुछ रुपए माँगते हैं लेकिन निर्मला टाल जाती है।
 
* मुंशी जी बिना निर्मला से मिले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं।
 
* निर्मला सोचती है कि शायद जाने से पहले मुंशी जी अपनी बच्ची को देखने या मुझसे मिलने आएँगे।
 
* मुंशी जी निर्मला से बिना मिले चले जाते हैं।
 
* निर्मला बेचैन होकर मुंशी जी को रोकने द्‌वार तक आती है किन्तु मुंशी जी जा चुके होते हैं। 
 
शब्दार्थ
 
दोषारोपण - दोष लगाना
मढ़ना - थोपना
कलेजा मसोसना - दिल दुखना
संकटमोचन - कष्ट दूर करना
 
 
अध्याय - २५
 
* एक महीना बीत जाता है लेकिन मुंशी जी नहीं लौटते हैं।
 
* निर्मला का स्वभाव बदलता जाता है। वह मृदुभाषी से कर्कशा हो चुकी है।
 
* निर्मला के जीवन में केवल सुधा का साथ था।
 
* एक दिन निर्मला सुधा के घर जाती है, सुधा स्नान के लिए नदी पर गई हुई थी, निर्मला सुधा के कमरे में जाकर किताब पढ़ती है और सुधा के लौटने का इन्तज़ार करती है।
 
* डॉक्टर सिन्हा अपनी ऐनक ढूँढ़ते हुए कमरे में दाखिल होते हैं, निर्मला उन्हें ऐनक ढूँढ़कर दे देती है।
 
* डॉक्टर सिन्हा निर्मला से प्रेम भरे शब्दों में कहते हैं कि वह तो रोज सुधा के लिए बैठती है, आज उनकी खातिर बैठ जाए।
 
* निर्मला और कुछ नहीं सुन पाती है और वहाँ से चली जाती है, निर्मला को जाते सुधा देख लेती है।
 
* सुधा द्‌वारा डॉक्टर सिन्हा से पूछने पर वह ऐनक वाली बात बता देते हैं पर अपनी बात छिपा जाते हैं।
 
* सुधा सच्चाई जानने के लिए निर्मला के घर जाती है।
 
* निर्मला की बातों से सुधा समझ जाती है कि डॉक्टर साहब ने कुछ छेड़छाड़ की है।
 
शब्दार्थ
 
अग्निमय वाणी - आग उगलने वाली जुबान
कर्कशा - कठोर बात कहने वाली
किलोल करना - खेलना, क्रीड़ा करना
भीरुता - कायरता
व्यग्र - चिन्तित
कांति - चमक
 
 
अध्याय - २६
 
* सुधा के जाने के बाद निर्मला पूरे दिन चारपाई पर पड़ी रही, शाम को उसे ज्वर भी हो गया।
 
* रुक्मिणी ने बताया कि डॉक्टर साहब की हालत खराब हो गई है। कोई कहता कि डॉक्टर सिन्हा ने ज़हर खा लिया है तो कोई कहता कि दिल का चलना बन्द हो गया था।
 
*निर्मला सुधा के घर गई लेकिन तब-तक डॉक्टर साहब की अर्थी जा चुकी थी।
 
शब्दार्थ
 
स्पन्दन - हरकत
अहीरन - दूधवाली
ज़हर का घूँट पीना - किसी कष्टदायक बात को सहन करना
शूल - पीड़ा
नीयत - मंशा, इरादा
 
 
अध्याय - २७ 
 
* डॉ० सिन्हा की मौत के बाद सुधा अपने देवर के साथ चली गई और एक बार फिर निर्मला बिल्कुल अकेली रह गई।
 
* निर्मला का जीवन से मोहभंग हो गया था, वह केवल अपनी बेटी को लेकर चिन्तित थी।
 
* रुक्मिणी निर्मला का ध्यान रखती है। निर्मला की सेहत बेहद खराब होती जाती है।
 
* निर्मला रुक्मिणी से कहती है कि मेरी बेटी का विवाह अच्छे कुल में करना।
 
* निर्मला रुक्मिणी से कहती है कि उसके पति ने हमेशा उसपर अविश्वास किया पर उसने कभी भी उनकी उपेक्षा नहीं की।
 
* चौथे दिन निर्मला का देहांत हो जाता है। मुहल्ले के लोगों ने लाश बाहर निकाली। अब प्रश्न उठा कि दाह-संस्कार कौन करेगा ? सब इसी चिन्ता में थे कि सहसा मुंशी तोताराम द्‌वार पर आकर खड़े हो गए।
 
शब्दार्थ
 
दुर्गन्ध - बदबू
त्रयपाद - तीन प्रकार के कष्ट
जिक्र - वर्णन
करमजली - अभागिनी
क्वाँरी - अविवाहित
बकुचा - छोटा सा सन्दूक