बसंती हवा
- केदारनाथ अग्रवाल
हमारे
देश में छह ऋतुएँ होती हैं, इन ऋतुओं में बसंत ऋतु को सर्वप्रिय ऋतु माना जाता है।
बसंती हवा बसंत ऋतु में बहती है।
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बसंती
हवा बावली, निडर और मस्तमौला होती है। उसे किसी बात की फ़िक्र नहीं होती। वह ऐसी मुसाफ़िर
है जो जहाँ चाहे वहाँ घूमती है।
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बसंती
हवा का कोई घर नही, प्रेमी नहीं और न कोई दुश्मन है। वह घूमते
घूमते शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन, हरे खेत, पोखर में चली जाती है।
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वह
महुआ के पेड़ पर चढ़ती है, उस पर से नीचे गिरती है और फिर आम के
पेड़ पर चढ़कर बच्चों की तरह उसके कानों में ‘कू’ आवाज़
करके भाग जाती है।
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वह
गेहुँओं के खेत में अपनी लहरे देर तक मारती है। अलसी की फसल जिसकी तुलना कवि ने कलश
से की है, उसे हिलाती है पर अलसी गिरती नहीं जिससे वह हार मानकर आगे बढ़ जाती है और
सरसो को नहीं हिलाती।
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फिर
वह रास्ते से गुज़र रहे पथिक को अपनी हवा के ज़ोर से ढ़्केलती है। जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे वह हँस रही हो। इसे देख सारे खेत, चमचमाती धूप
तथा पूरी सृष्टी हँसने लगती है।
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मूल्य – सब की प्रिय, स्वतंत्र
और मस्तमौला बसंत ऋतु में बहने वाली बसंती हवा कितनी मनमोहक होती है।
भक्ति के पद कक्षा - ७
पाठ का सार
मीराबाई
मीराबाई कृष्ण भक्त तथा सगुन भक्ति धारा की कवयित्री।
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मीराबाई
अपने पद में कहती हैं कि उन्होंने राम रतन धन पा लिया है। यह अमूल्य धन उन्हें गुरु
की कृपा से प्राप्त हुआ है।
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यह
धन ऐसी पूँजी है जो जन्म – जन्म तक उनके पास रहेगी। जिसे खर्च करने पर वह कम नहीं होता,
इस धन को कोई चोर नहीं चुरा सकता। यह धन ऐसा है जो दिन प्रतिदिन बढ़ता जाता है।
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मीरा
कहती हैं कि उनके गुरु ने उन्हें इस सत्य से अवगत करवाया है और इस सत्य की नाव पर सवार
हो चुकी हैं जिसके खेवटिया (नाविक) उनके गुरु हैं।
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इस
राम नाम के नाव पर सवार होकर वह इस संसार रूपी सागर को पार कर लेंगी। वो कहती हैं कि
उनके तो प्रभु गिरधर अर्थात कृष्ण हैं , वो प्रसन्न होकर अपने प्रभु का नाम लेती हैं और और उनके यश का गुणगान
करती है।
सूरदास
सूरदास
सगुण भक्त कवि हैं। इन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीला का वर्णन अपने पदों में किया है।
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प्रस्तुत
पद में बालक कृष्ण अपनी माता से कहते हैं कि उन्होंने मक्खन नहीं खाया है। गायों को
चराने के लिए वे मधुबन में सुबह ही गए और दिन भर वे वहीं थे , शाम होने पर वे वापस
आए हैं।
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वे
यह भी कहते हैं कि वे छोते बालक हैं, उनके हाथ छोते हैं तो मक्खन के मतके तक उनके हाथ
कैसे पहुँच सकते हैं। सारे ग्वाल उनके दुश्मन हैं जिन्होंने उनके मुख पर ज़बरदस्ती मक्खन
लगा दिया है।
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वे
कहते हैं कि माता ज़रूर तुम्हारे मन में कोई रहस्य छिपा है जिसके कारण तुम मुझे पराया
मान कर मुझपर मक्खन खाने का आरोप लगा रही हो। फिर वो रूठ जाते हैं
और अपनी लाठी तथा कंबल माता को देते हैं और कहते हैं कि तुमने मुझे अपने इशारों पर
बहुत नचाया है| यह सुनकर माता यशोदा हँसकर बालक कृष्ण को गले
लगा लेती हैं।
कबीर
कबीर
निर्गुण धारा के कवि हैं।
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कबीर
कहते हैं कि ईश्वर को बाहर ढूंढ़ना व्यर्थ है। वह हर व्यक्ति के अन्दर निवास करता है।
वह न मंदिर, मस्ज़िद और न ही काबा तथा कैलाश पर मिलेंगे।
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ईश्वर
किसी धार्मिक कार्य से नहीं मिलेंगे और न ही योग (तपस्या) या वैराग्य से मिलेंगे।
ढूँढ़ने पर वह पल भर में ही मिल सकते
हैं वे कहते हैं कि ईश्वर हर इनसान की साँस में बसते हैं। उन्हेँ
बाहर न ढूँढ़कर अपने अंदर ढूँढ़ना चाहिए।
नानक
देव
नानक
देव निर्गुण भक्ति धारा के कवि हैं।
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नानक
कहते हैं कि ईश्वर को ढूंढ़ने के लिए लोग वन में क्यों जाते हैं। अर्थात वन में तपस्या
करने क्यों जाते हैं।
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ईश्वर
को वन में जाकर ढूंढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि ईश्वर हर जगह निवास करते हैं
वे निराकार हैं इसलिए हर इनसान के भीतर समाये रहते हैं।
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जिस
प्रकार पुष्प में सुगंध होती है, दर्पण में प्रतिबिंब होती है वैसे ही ईश्वर हर इनसान
के हृदय में समाये हुए होते हैं, इसलिए उन्हें अपने भीतर ढूँढ़ना
चाहिए।
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ईश्वर
भीतर और बाहर हर जगह रहते हैं यह ज्ञान उन्हें गुरु से प्राप्त हुआ है। नानक कहते है
कि जब तक हम अपने आप को नहीं पह्चानेंगे तब तक हमारा भ्रम दूर नहीं होगा।
मूल्य
– भक्ति, ईश्वर प्रेम और संसार की नश्वरता का ज्ञान।
बूढ़ी काकी कक्षा - ७
-
मुंशी
प्रेमचंद
पाठ का सार
बूढ़ी
काकी को भोजन से बहुत लगाव था। कहा जाता है कि बूढ़ा होने पर व्यक्ति बच्चे की तरह व्यवहार
करता है। बूढ़ी काकी भोजन के लिये बच्चों की तरह ललचाती और जब उन्हें कोई कष्ट होता
तो बच्चों की तरह रोने लगती।
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काकी
का इस दुनिया में कोई न था। पति और पुत्र मर चुके थे। काकी ने अपनी सारी ज़ायदाद अपने
भतीजे बुद्धिराम के नाम कर दी थी। परन्तु वह काकी का खयाल नहीं रखते थे और काकी को
पेट भर भोजन भी नहीं मिलता था।
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बुद्धिराम
के परिवार में उनके दो लड़के थे और एक लड़की लाडली थी। बुद्धिराम की पत्नी का नाम रूपा
था। बूढ़ी काकी को लाडली से लगाव था।
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बुद्धिराम
के बड़े लड़के के तिलक के आयोजन में अलग-अलग पकवान बन रहे थे और
उन पकवानों की सुगंध ने काकी को परेशान कर रखा था। बूढ़ी काकी का पूड़ियों की कल्पना
करना, फिर काकी का कड़ाह के पास जाना जहाँ पकवान बन रहे थे।
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यह
देखकर बुद्धिराम की पत्नी रूपा का क्रोधित होना और उन्हें वहाँ से जाने के लिए कहना।
बूढ़ी काकी का कोठरी में आकर पश्चाताप करना और बुलावे का इंतज़ार करना, पर किसी के बुलाने
नहीं आने पर खुद आँगन में जाना।
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बूढ़ी
काकी को वहाँ देखकर बुद्धिराम ने उन्हें घसीटकर कोठरी में पटक दिया, जिससे काकी मूर्छित
हो गयी। काकी की चिंता किसी को न थी सिर्फ़ लाडली को उनकी चिंता थी कि काकी ने कुछ नहीं
खाया।
उसने
अपने हिस्से की पूड़ियाँ काकी के लिए बचा कर रखी थी।
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रात
को ग्यारह बजे सबके सो जाने पर लाडली ने काकी को पूड़ियाँ दी।
उन पूडियों को खाने के बाद काकी की भूख और तीव्र हो गयी। जिसके बाद भूख के कारण उचित
और अनुचित का विचार न करके जूठी पत्तलों के पास बैठकर जूठी पत्तलों से चुन-चुनकर खाने
लगी।
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काकी
को इस बात का ज्ञान था कि वो जो कर रही हैं वह ठीक नहीं ,पर वह मज़बूर थी। जब रूपा ने
यह दृश्य देखा तो वह हैरान रह गई। करुणा और भय से उसकी आँखें भर आई। उसे अपनी गलती
का एहसास होता है और रूपा इसके लिए परमात्मा से क्षमा मांगती है।
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इसके
बाद रूपा काकी के लिए एक थाल में पूड़ियाँ तथा अन्य पकवान लाती है। बूढ़ी काकी सारे अपमान
भूलकर खाना खाती है।
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मूल्य
: वृद्धों का सम्मान करना, बच्चों में स्नेह व शिष्टता।
चेतक कक्षा - ७
-
श्याम
नारायण पाण्डेय
महाराणा
प्रताप का घोड़ा चेतक इतना वफ़ादार था कि उनके लिए उसने अपने प्राण भी न्योछावर कर दिए।
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चेतक
युद्ध स्थल में ऐसे चौकड़ी भरता था जैसे वह हवा का सामना कर रहा हो और यही प्रवृत्ति
उसे निराला(अनोखा) बनाती ।
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राणा
प्रताप को कभी भी चेतक पर कोड़ा मारने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी क्योंकि वह खुद जानता था
कि उसे क्या करना है। वह शत्रुओं के सिर पर ऐसे दौड़ता था जैसे वह आसमान से बातें कर
रहा हो। अर्थात वह उछल-उछल कर शत्रुओं का सामना करता थ।
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हवा
से भी अगर उसकी लगाम हिल जाती तो वह सवार को लेकर दौड़ जाता था। राणा की आँखों की पुतली
जिस ओर घूमती थी वह उस ओर मुड़ जाता था।
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युद्ध
स्थल पर वह अपनी चाल की कुशलता दिखाकर भनायक अस्त्रों का भी सामना करता था, उसे अपनी
जान की परवाह न थी। निडर होकर भयानक हथियारों का सामना करके उसने अपनी वीरता का परिचय
दिया।
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युद्ध-भूमि
पर जहाँ भी शत्रु होते वह वहाँ पहुँच जाता। ऐसी कोई भी जगह न थी जहाँ वह शत्रुओं का
सामना करने न जाता हो। उसकी चाल ऐसी थी जैसे नदी की लहर हो। जैसे नदी की लहर मार्ग
की रुकावटों को देख रुक जाती है और उसे अपने लहरों से हटाकर आगे
बढ़ती है। वैसे ही चेतक युद्ध-भूमि में शत्रुओं को देख रुक जाता और उनकी सेना पर भयानक
काले बादल की तरह छा जाता।
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शत्रुओं
का सामना करते हुए जब राणा प्रताप के हाथ से उनका तरकश और भाला गिर गया तब चेतक अपने
पैरों से शत्रुओं पर वार करता और उनके शरीर को ज़ख्मी करता। चेतक के इस साहस को देखकर
शत्रु चकित हो गए कि घोड़ा भी इतना वीर हो सकता है।
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मूल्य – साहस, वीरता, त्याग और
बलिदान
राणा हारा नहीं कक्षा - ७
-किरण तामुली/अनुवाद-उदिता
जैन
पाठ
का सार
राणा, एक
विकलांग बच्चे ने कठिनाइयों से संघर्ष करके अपने जीवन को आनंद से भर दिया।
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राणा जब स्कूल आया खुश था।
उसे वह दिन याद आया जब क्रिकेट के मैदान में सब उसका तालियों से
स्वागत कर रहे थे।
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उसे देख कक्षा में बच्चों के
बीच गुनगुनाहट हुई – ‘पोलियो
हुआ है’। कक्षा के नए मानीटर राजीव के पूछने
पर उसने बताया कि साल भर
पहले वह क्रिकेट खेलता था और बच्चे उसे तेंदुलकर कहकर पुकारते थे। पर
फिर उसे पोलिओ हो गया।
।
राजीव के पापा ने बताया कि
गुवाहाटी में शारीरिक रूप से विकलांग खिलाड़ियों के लिए खेल महोत्सव होने
वाला है। जिसमें राणा ने
क्रिकेट की प्रतियोगिता में भाग लिया। राणा बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी दोनों में माहिर
था।
।
असम टीम के फाइनल में
पहुँचने पर राणा के खेल की खबरें फैल गई। फाइनल मैच में राणा कप्तान था।
उसने वहाँ आए सौरभ गांगुली
तथा सचिन तेंदुलकर से हाथ मिलाया।
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असम की टीम ने ९९ रन बनाए,
जिसमें राणा ने सबसे अधिक ५१ रन बनाए। पश्चिम बंगाल की टीम ने
सात विकेत खोकर ९० रन बना
लिए और ६ गेंदों में ९ रन बनाने बाकी थे।
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पश्चिम बंगाल के ९९ रन बना
लेने पर उन्हें एक रन की ज़रूरत थी। अंतिम गेंद काफ़ी ऊपर उछली और
राणा जब गेंद पकड़ने गया तो उसके
हाथ से बैशाखियाँ छूट गईं, राणा गिर गया और उसने गेंद पकड़ लिया
जिससे मैच टाई रहा। “मैन आफ़
द मैच” राणा को मिला।
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जिसके बाद राणा का पोस्टर
गुवाहाटी के कोने-कोने में जगमगाने लगा।
मूल्य – साहस,
हिम्मत, संघर्ष, पक्का इरादा।
सोना (संस्मरण) कक्षा - ७
-महादेवी वर्मा
पाठ का सार
सोना
हरिण शावक (हरिण का शिशु) सुनहरे रंग की, रेशमी लच्छों की गाँठ के समान उसका कोमल शरीर
था। छोटा-सा मुँह और बड़ी-बड़ी पानीदार आँखें। लंबे कान, पतली सुडौल टाँगें, उसके रूप
से प्रभावित होकर उसका नाम सोना पड़ा।
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जंगल
में शिकारियों की आहट सुनकर जब सारे मृग भागे तब सोना की माँ भाग न सकी क्योंकि उसी
समय सोना का जन्म होने वाला था। फिर सोना की माँ की मृत्यु हो गयी और शिकारी उसे अपने
साथ ले आया और फिर सोना को एक लड़की लेखिका के पास छोड़ गयी।
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सोना
छात्रावास की छात्राओं तथा लेखिका के साथ घुल-मिल गई। सोना को छोटे बच्चे अधिक प्रिय
थे क्योंकि वह उनके साथ खेल पाती थी। लेखिका के खड़े होने पर छलाँग लगाती और लेखिका
के सिर के ऊपर से निकल जाती। यदि लेखिका उस पर क्रोध करती तो वह चकित निगाहों से उन्हें
देखती रहती।
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लेखिका
के घर में मौज़ूद अन्य जानवर बिल्ली गोधूली, कुत्ते हेमंत, बसंत और फ्लोरा उसके अच्छे
साथी बन गये थे। फ्लोरा ने जब चार बच्चों को जन्म दिया तब सोना उनके पास चली जाती और
फ्लोरा सोना के अलावा और किसी को अपने बच्चों के पास आने नहीं देती।
।
लेखिका
बद्रीनाथ की यात्रा पर फ्लोरा के साथ गयी, क्योंकि फ्लोरा लेखिका के बिना नहीं रह सकती
थी। जब वह लौटकर वापस आयी तो अन्य सारे पालतू जानवर कोलाहल करने लगे और उनके पास आ
गये। पर सोना उनमें न थी। लेखिका के पूछने पर पता चला कि लेखिका और फ्लोरा के अभाव
में वह व्याकुल हो गयी और वह कंपाउंड के बाहर उन्हें खोजने के लिये चली जाती।
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सोना
को कोई लेकर न चला जाए, इस डर से माली ने उसे मैदान में एक लम्बी
रस्सी से बांधना शुरु कर दिया। एक दिन वह यह भूलकर कि वह रस्सी से बंधी है, उसने ऊँची
छलांग लगाई और रस्सी के कारण मुँह के बल आ गिरी। जिससे उसकी मृत्यु हो गयी।
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इसके
बाद लेखिका ने तय किया कि वो कभी हिरन नहीं पालेंगी, परन्तु फिर से उन्हें हिरन पालना
पड़ा।
मूल्य – वन्य जीवों से प्रेम, शिकार
की निंदा, जीवों से प्रेम की भावना।
स्वामी की दादी कक्षा - ७
-
आर.
के. नारायण
पाठ का सार
शाम
को क्रिकेट मैदान से लौटने पर स्वामी को दादी की यद आना कि उसने दादी की बात नहीं मानी
और नींबू लाने से मना कर दिया। यह बात याद आते ही उसकी अंतरात्मा उसे कोसने लगी।
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इन
सारी बातों को सोचकर उसका डर जाना कि दादी कहीं दर्द के कारण मर न गई हो। घर लौटकर
दादी से पूछना कि उसे नींबू मिला कि नहीं।
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स्वामी
का यह जानकर बेहद खुश होना कि दादी को नींबू मिल गए। फिर स्वामी द्वारा दादी को महान
क्रिकेट खिलाड़ी ‘टेट’ के बारे में बताना।
।
स्वामी
का यह जान्कर आश्चर्य्चकित हो जाना कि दादी टेट जैसे महान खिलाड़ी को नहीं जानती न ही
क्रिकेट जैसे लोकप्रिय खेल को जानती है।
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उसे
यह एहसास होना कि दादी अज्ञान के अँधकार में डूबी हुई है उसका
फ़र्ज़ है कि वह उसे इस अंधकर से निकाले। इसलिये उसका दादी को क्रिकेट तथा क्रिकेट खिलाड़ियों
के बारे में बताना ।
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स्वामी
द्वारा दादी को एम. सी. सी. तथा अपनी क्रिकेट टीम के बारे में बताना। इसी बीच पिता
का वहाँ आना और बातचीत करना, फिर स्वामी को खाना खाने के लिए बुलाना।
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मूल्य
– सेवा, प्रेम, ज्ञान तथा पारिवारिक दायित्व निभाना।
यह मेरा : यह
मीत का कक्षा
- ७
-
हजारी
प्रसाद द्विवेदी
पाठ का सार
लेखक
के गुरु का शिष्यों को प्रत्येक पाठ आसानी से सिखाने के लिए दो गहरे मित्रों की कहानी
सुनाना
।
एक मित्र धनी व्यापारी का पुत्र था और दूसरा निर्धन
था। दोनों एकदूसरे को मीत कह्कर पुकारते थे
।
व्यापारी के पुत्र का ज़िद करना कि यदि उसका मित्र
निर्धनता के कारण नहीं पढ़ सकता तो वह भी
नहीं पढ़ेगा और इस तरह अपने पिता से गरीब मित्र के
खर्च की व्यवस्था करवाना
।
आगे चलकर गरीब मित्र का प्रकांड विद्वान बन जाना।
राजा के दरबार में मंत्री चुना जाना
।
व्यापारी मित्र की सारी संपत्ति डाकूओं ने लूट लिया। जिससे वह फटेहाल भिक्षुक बन गया
।
मंत्री मित्र ने व्यापारी मित्र को देखना और राजा
के यहाँ से १०० मुद्राएँ दिलवाना
।
व्यापारी मित्र की स्थिति सुधर गई , वह लखपती हो
गया। फ़िर उसे मंत्री मित्र के बेटे के बारे में पता
चला कि वह कुछ नहीं सीख सका।
।
व्यापारी मित्र
का मंत्री मित्र के पुत्र को समझाना कि – “देखो , तुम्हारे पिता की सहायता से मैंने
एक सौ
मुद्राएँ राजा
से याचक बनकर लीं। उनसे मैंने व्यापार शुरु किया। लाभ होने लगा । मैं हर लाभ के दो
भाग कर देता
और कहता, यह मेरा है , यह मेरे मीत का है। मैं दोनों भागो को
अलग-अलग व्यापार में
लगाता। इस तरह
लाभ बढ़ता गया, व्यापार बढ़ता गया।”
।
“ बेटे ! अगर
इसी तरह तुम भी एक-एक ज्ञान को, एक-एक विद्या को अपना समझ लो और अपने मित्रों
के लिए दिल
और दिमाग में रखते जाओ तो छह वर्षों में तुम क्या बन जाओगे ?”
।
लड़के की बुद्धि
खुल गई , वह अध्ययन में लग गया और वह रोज़ जो कुछ सीखता , मन ही मन अपने
काल्पनिक मित्र
को भी सिखाता। वह कहता , “ यह मेरा है , यह मेरे मीत का। इस तरह वह भी प्रकांड
पंडित बन गया।
।
लेखक के गुरुजी
यह कहानी सबको सुनाते और इससे सभी शिष्यों पर बड़ा प्रभाव पड़ता। वे भी इसी तरह पाठ
दोहराते, जिससे
पढ़ाई-लिखाई के प्रति एक नया उत्साह भर जाता।
आ रही रवि की सवारी
हरिवंशराय बच्चन
एलबम
सुदर्शन
माँ कह एक कहानी
मैथिलीशरण गुप्त
झाँसी की राना
सुभद्राकुमारी चौहान
दादा बने खिलाड़ी
नीलम राकेश
विशेष पुरस्कार
नवारूण वर्मा
तीर्थयात्रा
सुदर्शन
संतों की वाणी
कबीरदास
संतों की वाणी
रहीम
नादान दोस्त
प्रेमचंद
शहीद (पत्र)
संकलित
महायज्ञ का पुरस्कार
यशपाल जैन
इतने ऊँचे उठो
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
अनोखा हॉर्न
इरा सक्सेना
दीवानों की क्या हस्ती
कवि-भगवतीचरण वर्मा
मित्रता
लेखक-विश्वनाथ भारद्वाज
पंच-परमेश्वर
लेखक-प्रेमचंद
समय-नियोजन
लेखक-समर बहादुर सिंह
प्रायश्चित
लेखक-भगवतीचरण वर्मा
मुरझाया फूल
कवयित्री-महादेवी वर्मा
भारत के सपूत स्वामी विवेकानंद
लेखक-हरिश्चंद्र
नीति-नवनीत
कबीर-रहीम-बिहारी
साइकिल की सवारी
लेखल-सुदर्शन