साप्ताहिक गृह-कार्य (NEW)

शैक्षणिक सत्र - 2015-16
 
अपठित गदयांश
कक्षा – 6
एक मेहनती और ईमानदार  नौजवान बहुत पैसे कमाना चाहता था  क्योंकि वह गरीब था और बदहाली में जी रहा था। उसका सपना था कि वह मेहनत करके - खूब पैसे कमाए और एक दिन अपने पैसे से एक कार खरीदे। जब भी वह कोई कार देखता तो उसे अपनी कार खरीदने का मन करता। कुछ साल बाद उसकी अच्छी नौकरी लग गयी। उसकी शादी भी हो गयी और कुछ ही वर्षों में वह एक बेटे का पिता भी बन गया। सब कुछ ठीक चल रहा था मगर फिर भी उसे एक दु:ख सताता था कि उसके पास उसकी अपनी कार नहीं थी। धीरेधीरे उसने पैसे जोड़ कर एक कार खरीद ली। कार खरीदने का उसका सपना पूरा हो चुका था और इससे वह बहुत खुश था। वह कार की बहुत अच्छी तरह देखभाल करता था और उसमें शान से घूमता था। एक दिन रविवार को वह कार को रगड़रगड़ कर धो रहा था। यहाँ  तक कि गाड़ी के टायरों को भी चमका रहा था। उसका 5 वर्षीय बेटा भी उसके साथ था। बेटा भी पिता के आगे पीछे घूमघूम कर कार को साफ़  होते देख रहा था। कार  धोते- धोते अचानक उस आदमी ने देखा कि उसका बेटा कार के बोनट पर किसी चीज़ से खुरचखुरच कर कुछ लिख रहा है। यह देखते ही उसे बहुत गुस्सा आया। वह अपने बेटे को पीटने लगा। उसने उसे इतनी ज़ोर  से पीटा  कि  बेटे के हाथ की एक उँगली ही टूट गयी। दरअसल वह आदमी अपनी कार को बहुत चाहता था और वह बेटे की इस शरारत को बर्दाश्त नहीं कर सका बाद में जब उसका गुस्सा कुछ कम हुआ तो उसने सोचा कि जा कर देखूँ कि कार में कितनी खरोंच लगी है। कार के पास जा कर देखने पर उसके होश उड़ गये। उसे खुद पर बहुत गुस्सा रहा था। वह फूटफूट कर रोने लगा। कार पर उसके बेटे ने खुरच कर लिखा था Papa, I love you. यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी के बारे में कोई गलत राय रखने से पहले या गलत फैसला लेने से पहले हमें ये ज़रूर सोचना चाहिए कि उस व्यक्ति ने वह काम किस नियत से किया है।
प्रश्न:
क) कौन पैसे कमाना चाहता था और क्यों ? 
                                                                     
ख) रविवार के दिन वह क्या कर रहा था ?
                                                                     
ग) उसका बेटा कितने वर्ष का था ? वह पिता के साथ क्या कर रहा था ?
                       
घ) इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
                                                                     
 

 
 
 
अपठित गद्‍यांश
कक्षा - 7

एक अमीर आदमी अपने बेटे की किसी बुरी आदत से बहुत परेशान था। वह जब भी बेटे से आदत छोड़ने को कहता तो एक ही जवाब मिलता, “अभी मैं इतना छोटा हूँ। धीरे-धीरे ये आदत छोड़ दूँगा! पर वह कभी भी आदत छोड़ने का प्रयास नहीं करता। उन्हीं दिनों एक महात्मा गाँव में पधारे हुए थे, जब आदमी को उनकी ख्याति के बारे में पता चला तो वह तुरंत उनके पास पहुँचा और अपनी समस्या बताने लगा। महात्मा जी ने उसकी बात सुनी और कहा, ठीक है, आप अपने बेटे को कल सुबह बगीचे में लेकर आइए, वहीं मैं आपको उपाय बताऊँगा।

     अगले दिन सुबह पिता-पुत्र बगीचे में पहुँचे। महात्मा जी बेटे से बोले,“आइए हम दोनों बगीचे की सैर करते हैं।और वो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। चलते-चलते ही महात्मा जी अचानक रुके और लड़के से से कहा, “ क्या तुम इस छोटे से पौधे को उखाड़ सकते हो ?” लड़के ने कहा “जी हाँ, इसमें कौन सी बड़ी बात है।” और ऐसा कहते हुए बेटे ने आसानी से पौधे को उखाड़ दिया। फिर वे आगे बढ़ गए और थोड़ी देर बाद महात्मा जी ने थोड़े बड़े पौधे की तरफ इशारा करते हुए उसे उखाड़ने के लिए कहा । बेटे को तो मानो इन सब में कितना मज़ा आ रहा हो, वह तुरंत पौधा उखाड़ने में लग गया। इस बार उसे थोड़ी मेहनत लगी पर काफ़ी प्रयत्न के बाद उसने इसे भी उखाड़ दिया।

      वे फिर आगे बढ़ गए और कुछ देर बाद पुनः महात्मा जी ने एक गुड़हल के पेड़ की तरफ इशारा करते हुए बेटे से इसे उखाड़ने के लिए कहा। बेटे ने पेड़ का तना पकड़ा और उसे जोर-जोर से खींचने लगा, पर पेड़ तो हिलने का भी नाम नहीं ले रहा था। जब बहुत प्रयास करने के बाद भी पेड़ टस से मस नहीं हुआ तो बेटा बोला, “अरे ! ये तो बहुत मजबूत है इसे उखाड़ना असंभव है।”

महात्मा जी ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, “ बेटा, ठीक ऐसा ही बुरी आदतों के साथ होता है, जब वे नयी होती हैं तो उन्हें छोड़ना आसान होता है, पर वे जैसे-जैसे पुरानी होती जाती हैं उन्हें छोड़ना मुश्किल होता जाता है।” लड़का उनकी बात समझ गया और उसने मन ही मन आज से ही आदत छोड़ने का निश्चय कर लिया।



प्रश्न:                                                                                                                                                
  क) अमीर आदमी किस वजह से परेशान था ? वह अपने पुत्र से 
        क्या कहता था ?

 ख) परेशानी दूर करने के लिए उसने क्या किया ?

 ग) लड़का कौन-सा पेड़ नहीं उखाड़ पाया और क्यों ?

  घ) इस गद्‍यांश से आपको क्या शिक्षा मिलती है ?


अपठित गद्‌यांश

कक्षा - 8

 

    एक बार पोर्ट नदी के किनारे एक सुंदर राज्य बसा था | राज्य का नाम था लीगोलैंड | लीगोलैंड में इवानुश्का नाम का राजा राज्य करता था | राजा अपनी विद्वत्ता के लिए प्रसिद्‌ध था। एक दिन लीसा नाम का एक व्यक्ति राजा इवानुश्का के दरबार में आया | कहने लगा-‍ "हे राजन, मैं आपके दरबार में नौकरी प्राप्त करने की इच्छा से आया हूँ, आप जो भी काम मुझे दें, मैं करने को तैयार हूँ | वैसे मैं पढ़ा-लिखा युवक हूँ |" राजा बोला - "हम तुम्हारी परीक्षा लिए बिना तुम्हें नौकरी नहीं दे सकते, यदि तुम हमारे यहाँ नौकरी करना चाहते हो तो हमारे दरबार में सुबह ही हाज़िर हो जाना | परंतु याद रहे कि तुम कोई भी उपहार हमारे लिए नहीं लाना, लेकिन बिना उपहार लिए खाली हाथ भी मत आना | सारे दरबारी राजा का मुँह देखने लगे |" लीसा ने सिर झुकाकर कर अभिवादन किया और 'जो आज्ञा' कह कर चला गया | अगले दिन लीसा दरबार में उपस्थित हुआ तो उसके हाथ में एक सफेद कबूतर था| राजा के सामने पहुँच कर लीसा बोला - "राजन, यह लीजिए मेरा उपहार |" यह कहकर कबूतर राजा की ओर बढ़ा दिया | परंतु ज्यों ही राजा ने हाथ बढ़ाया, कबूतर उड़ गया | राजा ने कहा - "पहली परीक्षा में तुम सफल हुए हो |" इसके पश्चात राजा ने धागे का एक छोटा-सा टुकड़ा लीसा को देते हुए कहा - "कल हमारे लिए इस धागे से आसन बुन कर लाना| हम उसी आसन पर बैठेंगे |" लीसा ने धागा लिया और 'जो आज्ञा राजन !' कहकर चल दिया | सारे दरबारी इस बार लीसा को देखने लगे और सोचने लगे कि यह व्यक्ति तो निरा मूर्ख लगता है। पर शाम को लीसा ने राजा के नौकरों के हाथ एक सींक भिजवाई और कहलाया - "इसका बना चरखा रात तक मेरे पास पहुँचवा दीजिए | सुबह मैं आसन लेकर आ आऊँगा |" राजा लीसा का मतलब समझ गया | अगले दिन राजा ने अपने सिपाहियों के हाथ कुछ फूलों के बीज भेजे और कहलवाया - "कल सुबह इन बीजों से उगे फूल खिलते पौधे लेकर हाज़िर हो जाओ |" लीसा ने सिपाहियों को दो गत्ते के डिब्बे दिए और राजा के पास संदेश भिजवाया - "राजन , मैं बहुत गरीब आदमी हूँ | इन डिब्बों में से एक में धूप और एक में हवा भर कर भिजवा दीजिए | फूल खिल जाएँगे और मैं लेकर दरबार में हाज़िर हो जाऊँगा |" राजा, मंत्री व दरबारी लीसा की चतुराई से प्रसन्न हो गए थे | सभी ने लीसा को नौकरी देने की राजा इवानुश्का को सलाह दी | पर राजा हार मानने को तैयार न था | राजा ने सोचा एक बार मैं लीसा की परीक्षा और ले लूँ, तभी उसे कोई अच्छी नौकरी दूँ | राजा ने अपने सिपाहियों से लीसा के पास सूचना भिजवाई - "राजा का आदेश है कि तुम सुबह राजा के दरबार में हाज़िर हो | लेकिन न तुम पैदल दरबार में आओ और न ही घोड़े पर | न तुम वस्त्र पहन कर दरबार में आओ और न ही नंगे बदन |" राजा की इस शर्त से सभी दरबारी व सिपाही सकते में आ गए | वे सोचने लगे लगे कि आज राजा की सूचना पाकर लीसा रातों-रात राज्य छोड़कर भाग जाएगा | वे सोच रहे थे कि शायद राजा इवानुश्का को लीसा की बुद्‌धिमत्ता पर शक है और उसको नौकरी नहीं देना चाहते हैं | इसी कारण ऐसी अटपटी शर्त रखी है | परंतु उनकी कल्पना के विपरीत लीसा सुबह ही दरबार में हाज़िर हुआ | वह कछुए पर सवार होकर दरबार में पहुँचा था | सभी दरबारियों की निगाह लीसा पर ठहरी हुई थी | लीसा ने अपने शरीर पर मछली पकड़ने का जाल ओढ़ा हुआ था | लीसा ने जाकर राजा को झुककर प्रणाम किया | राजा बोले -"लीसा, तुम सचमुच बुद्‌धिमान हो | तुमने मेरी उन शर्तों को पूरा कर दिखाया जिन शर्तों को सुनकर मेरे अपने दरबारियों व मंत्रियों का सिर नीचा हो गया | मैं तुम्हें आज से ही अपना प्रमुख सलाहकार व मंत्री नियुक्त करता हूँ |" सारा दरबार तालियों से गूंज उठा | सारे राज्य में हर ओर लीसा की बुद्‌धिमत्ता की प्रशंसा हो रही थी |



प्रश्न:
(i) राज्य कहाँ बसा था ? वहाँ के राजा का क्या नाम था ?                       
(ii) नौकरी के लिए आए युवक के सामने राजा ने पहली क्या शर्त रखी ?            
(iii) राजा से मिले धागे का युवक ने क्या
    किया ?                                                                      
(iv) अंतिम परीक्षा राजा ने क्या रखी और उसका परिणाम क्या  
    निकला ?                                             
 
(v) उक्त गद्यांश से आपने क्या सीखा ?                                            


अपठित गद्‌यांश

कक्षा -9

राजा कृष्णदेव राय के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्‌धिमान दरबारी तेनालीराम अपने मीठे हास्य, कटाक्ष और हाज़िर-जवाबी के बल पर ऐसे-ऐसे असाधारण काम कर गुज़रता था कि उसके आगे बड़े-बड़े दिग्गज और सूरमा धराशायी हो जाते थे।

कोई छह सौ वर्ष पुरानी बात है। विजयनगर का साम्राज्य सारी दुनिया में प्रसिद्‌ध था। उन दिनों भारत पर विदेशी आक्रमणों के कारण प्रजा बड़ी मुश्किलों में थी। हर जगह लोगों के दिलों में दुख-चिंता और गहरी उधेड़-बुन थी। पर विजयनगर के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय की कुशल शासन-व्यवस्था, न्याय-प्रियता और प्रजा-वत्सलता के कारण वहाँ प्रजा बहुत खुश थी। राजा कृष्णदेव राय ने प्रजा में मेहनत और सद्गुणों के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए स्वाभिमान का भाव पैदा कर दिया था, इसलिए विजयनगर की ओर देखने की हिम्मत किसी विदेशी आक्रांता की नहीं थी। विदेशी आक्रमणों की आँधी के आगे विजयनगर एक मज़बूत चट्‌टान की तरह खड़ा था। साथ ही वहाँ लोग साहित्य और कलाओं से प्रेम करने वाले तथा परिहास-प्रिय थे।
उन्हीं दिनों की बात है, विजयनगर के तेनाली गाँव में एक बड़ा बुद्‌धिमान और प्रतिभासंपन्न किशोर था। उसका नाम था रामलिंगम। वह बहुत हँसोड़ और हाज़िर-जवाब था। उसकी हास्यपूर्ण बातें और मज़ाक तेनाली गाँव के लोगों को खूब आनंदित करते थे। रामलिंगम खुद ज्यादा हँसता नहीं था, पर धीरे से कोई ऐसी चतुराई की बात कहता कि सुनने वाले हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उसकी बातों में व्यंग्य और बड़ी सूझ-बूझ होती थी। इसलिए वह जिसका मज़ाक उड़ाता, वह शख्स भी द्वेष भूलकर औरों के साथ खिलखिलाकर हँसने लगता था। यहाँ तक कि अक्सर राह चलते लोग भी रामलिंगम की कोई चतुराई की बात सुनकर हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते।
अब तो गाँव के लोग कहने लगे थे, ‘‘बड़ा अद्‌भुत है यह बालक। हमें तो लगता है कि यह रोते हुए लोगों को भी हँसा सकता है।
रामलिंगम कहता, ‘‘पता नहीं, रोते हुए लोगों को हँसा सकता हूँ कि नहीं, पर सोते हुए लोगों को ज़रूर हँसा सकता हूँ।’’
सुनकर आसपास खड़े लोग ठठाकर हँसने लगे।
यहाँ तक कि तेनाली गाँव में जो लोग बाहर से आते,
उन्हें भी गाँव के लोग रामलिंगम के अजब-अजब किस्से और कारनामे सुनाया करते थे। सुनकर वे भी खिलखिलाकर हँसने लगते थे और कहते, ‘‘तब तो यह रामलिंगम सचमुच अद्‌भुत है। हमें तो लगता है कि यह पत्थरों को भी हँसा सकता है!’’
गाँव के एक बुज़ुर्ग ने कहा, ‘‘भाई, हमें तो लगता है कि यह घूमने के लिए पास के जंगल में जाता है, तो वहाँ के पेड़-पौधे और फूल-पत्ते भी इसे देखकर ज़रूर हँस पड़ते होंगे।’’
एक बार की बात है, रामलिंगम जंगल में घूमता हुआ माँ दुर्गा के एक प्राचीन मंदिर में गया। उस मंदिर की मान्यता थी और दूर-दूर से लोग वहाँ माँ दुर्गा के दर्शन करने आया करते थे।
रामलिंगम भीतर गया तो माँ दुर्गा की अद्‌भुत मूर्ति देखकर मुग्ध रह गया। माँ के मुख-मंडल से प्रकाश फूट रहा था। रामलिंगम की मानो समाधि लग गई। फिर उसने दुर्गा माता को प्रणाम किया और चलने लगा। तभी अचानक उसके मन में एक बात अटक गई। माँ दुर्गा के चार मुख थे, आठ भुजाएँ थीं। इसी पर उसका ध्यान गया और अगले ही पल उसकी बड़े ज़ोर से हँसी छूट गई।
देखकर माँ दुर्गा को बड़ा कौतुक हुआ। वे उसी समय मूर्ति से बाहर निकलकर आईं और रामलिंगम के आगे प्रकट हो गईं। बोलीं, ‘‘बालक, तू हँसता क्यों है ?’’
रामलिंगम माँ दुर्गा को साक्षात सामने देखकर एक पल के लिए तो सहम गया। पर फिर हँसते हुए बोला, ‘‘क्षमा करें माँ, एक बात याद आ गई, इसीलिए हँस रहा हूँ।’’
‘‘कौन सी बात ? बता तो भला !’’ माँ दुर्गा ने पूछा।
इस पर रामलिंगम ने हँसते-हँसते जवाब दिया, ‘‘माँ, मेरी तो सिर्फ एक ही नाक है पर जब ज़ुकाम हो जाता है तो मुझे बड़ी मुसीबत होती है। आपके तो चार-चार मुख हैं और भुजाएँ भी आठ हैं। तो जब ज़ुकाम हो जाता होगा, तो आपको और भी ज़्यादा मुसीबत...!’’
रामलिंगम की बात पूरी होने से पहले ही माँ दुर्गा खिलखिलाकर हँस पड़ीं। बोलीं, ‘हट पगले, तू माँ से भी मज़ाक करता है !’’
फिर हँसते हुए उन्होंने कहा, ‘‘पर आज मैं समझ गई हूँ कि तुझमें हास्य की बड़ी अनोखी सिद्‌धि है। अपनी इसी सूझ-बूझ और हास्य के बल पर तू नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। पर एक बात याद रख, अपनी इस हास्य-वृत्ति का किसी को दुख देने के लिए प्रयोग मत करना। सबको हँसाना और दूसरों की भलाई के काम करना। जा, तू राजा कृष्णदेव राय के दरबार में जा। वही तेरी प्रतिभा का पूरा सम्मान करेंगे।’’
उस दिन रामलिंगम दुर्गा माँ के प्राचीन मंदिर से लौटा, तो उसका मन बड़ा हल्का-फुल्का था। लौटकर उसने माँ को यह अनोखा प्रसंग बताया। सुनकर माँ चकित रह गईं।
और फिर होते-होते पूरे तेनाली गाँव में यह बात फैल गई कि रामलिंगम को दुर्गा माँ ने बड़ा अद्‌भुत वरदान दिया है। यह बड़ा नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। उसके साथ ही साथ तेनाली गाँव का नाम भी ऊँचा होगा।
 
(क) विदेशी आक्रमणकारी विजयनगर पर हमला करने का साहस क्यों
      नहीं करते थे ?  
            
 (ख) रामलिंगम कौन था और उसकी खूबी क्या थी ?

(ग) माँ दुर्गा की मूर्ति देखकर रामलिंगम के मन में क्या विचार उत्पन्न हुए ?
                 
 
(घ) माँ दुर्गा ने प्रकट होकर क्या कहा ?                                                                                                   

(ङ) प्रस्तुत गद्‌यांश से आपको क्या शिक्षा मिली ?